महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग २

Friday, May 27, 2011

कितना भी चाहो ना भुला पाओगे हमें,
जितना दूर जाओगे,नज़दीक पाओगे हमें,
मिटा सकते हो तो मिटा दो यादें मेरी,
मगर क्या सपनों से जुदा कर पाओगे हमें..

हम आपको पलकों में नहीं बिठाएँगे,
वहाँ तो सपने में बसते हैं,
बिठाएँगे तो सिर्फ दिल में,
क्यूंकि वहाँ तो सिर्फ अपने बसते हैं..

रोती हुई आँखों में इंतज़ार होता है,
ना चाहते हुए भी प्यार होता है,
क्यूँ देखते हैं हम वो सपने,
जिनके टूटने पर भी उनके साथ होने का इंतज़ार होता है..

तुम आये थे ज़िन्दगी में कहानी बनकर,
तुम आये थे ज़िन्दगी में रात कि चाँदनी बनकर,
बसा लिया था जिन्हें हमने आँखों में,
आजकल वो अक्सर निकल जाते हैं आँखों से पानी बनकर..

मेरी मोहब्बत तेरी खता बन गयी,
यही दीवानगी मेरी सज़ा बन गयी,
उनकी मासूमियत पर फिर फ़िदा हुआ ऐसे,
कि उन्हें पाना ही ज़िन्दगी कि रज़ा बन गयी...

कवि :-मोहित कुमार जैन

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