महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग ४

Friday, May 27, 2011

जानेमन दिल को लगाना तो बड़ा आसान है,
रस्म-ए-उल्फत को निभाना बड़ा मुश्किल है,
शीशा-ए-दिल को तोडना तो बहुत आसान है,
इश्क में खुद को मिटाना बड़ा मुश्किल है..

वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है,
ज़िन्दगी में एक बार होता है,
निगाहों के मिलते ही दिल मिल जाए,
ये इत्तेफाक सिर्फ एक बार होता है..

तुम्हारी दोस्ती का क्या जवाब दूँ,
तुम जैसे दोस्त को क्या खिताब दूँ,
कोई अच्छा सा गुलाब होता तो ला देता,
पर जो खुद ही गुलिस्तान हो उसे क्या गुलाब दूँ..

मेरी किसी खता पर नाराज़ ना होना,
अपनी प्यारी सी मुस्कान कभी ना खोना,
सुकून मिलता है आपकी हँसी को सुनकर,
हँसते रहना,ज़िन्दगी में कभी ना उदास होना..

प्यार इंसान कि ज़रुरत है,
दिल पर प्यार कि हुकूमत है,
मैं तो आपकी वजह से जिंदा हूँ,
वरना यहाँ किसको मेरी ज़रुरत है...

हर एक सितारा हारकर बैठा,
वो आज छत पर जुल्फें सँवार कर बैठा,
मेरा कसूर था इकरार कर रहा हूँ,
मैं एक अमीर कि बेटी से प्यार कर बैठा..

तुझे भूल जाना है ग़ैर-मुमकिन,
मगर भूल जाने को दिल चाहता है,
हसीं तेरी आँखें,हसीं तेरे आँसू,
यूँ ही डूब जाने को जी चाहता है..


कवि :-मोहित कुमार जैन

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