तुम्हारे आने के बाद...

Friday, January 29, 2010



यह रास्ते ज़िन्दगी के,
जो फासले बन गए थे,
तुम्हारे आने के बाद,जैसे मंजिलों से मिल रहे थे,
वो रुखी-सूखी सी,बेरंग जो ज़िन्दगी थी,
तुम्हारे आने के बाद,जैसे फूल उस में भी खिल गए थे,
पतझड़ के मौसम में,तुम सावन बन गए थे,
ज़िन्दगी की कहानी की तुम कविता बन गए थे,
मेरे दिल की बगिया में कली बन के खिल गए थे,
मेरे जिस्म की साँसों में खुशबू बन के बिखर गए थे,
वो नज़रें तुम्हारी,जैसे गहराई हो किसी झील की,
वो बातें तुम्हारी जैसे डली हो मिश्री की,
तुम्हारे गेसुओं की वो घनी छाँव जैसे,
आसमाँ में बादलों के समूह उमड़ गए थे,
मेरी कविताओं की प्रेरणा बन गयी हो तुम,
भावनाएं मेरी,मगर शब्द बन गयी हो तुम,
पहले तो नहीं,मगर अब दोस्त मेरे भी,
मुझसे कहने लगे थे,
की तुम्हारी मोहब्बत में शायद,दीवाने हम हो गए थे,
यह सच है या नहीं,यह तो नहीं मालूम,
मगर इतना तो पता है हमें की,
आलम कुछ ऐसा हो गया है ज़िन्दगी का जैसे,
नदी तुम और धरा हम बन गए थे,
समंदर तुम और लहर हम बन गए थे,
लहर हम बन गए थे॥

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