लम्हा-लम्हा

Saturday, January 30, 2010



लम्हा-लम्हा जो मैंने तुम्हारे बिन बिताया,
लम्हा-लम्हा वो लगा जैसे हो एक कला साया,
हर लम्हे में तुम्हारी याद बेहिसाब आई,
ना चाहते हुए भी कई बार आँख भर आई,
फलक पर चाँद भी तो तन्हा है मेरी तरह,
पर उसे देखकर लगता है की सितारे तो हैं,
ठीक वैसे ही मैं भी यहाँ पर तन्हा हूँ कितना,
पर मुझे देखकर लगता है की नज़ारे तो हैं,
आ जाओ फिर से तुम बन के मेरी ज़िन्दगी में बहार,
और बी हर दो हर लम्हे में बस प्यार ही प्यार।

दिनाँक:-3०/०५/२००७

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