कंक्रीट के जंगल

Monday, June 17, 2013

आज चारों ओर जब देखता हूँ बड़े बड़े शहरों की जीवनशैली तो बस लगता है की क्या यह वास्तव में जीवन है या सिर्फ एक समझौता जो लोग कर रहे हैं अपनी आज़ाद ज़िन्दगी के साथ,कुछ कंक्रीट के जंगलों में रहने के लिए.अफ़सोस होता है उन लोगों पर जो मानव के आज़ाद और स्वछन्द व्यवहार को एक बड़े शहर की कंक्रीट की किसी बड़ी बिल्डिंग में क़ैद कर देते हैं और फिर भी खुश हैं?या समझौते को ख़ुशी का नाम दे दिया है.आज की पीढ़ी से कहीं बेहतर वो पुरानी पीढ़ी लगती है.हमारे पास कंक्रीट की बिल्डिंग में एक कमरे का घर है जिसमे दो लोगों का रहना भी अजनबियों के रहने जैसा लगता है क्यूंकि दिलों का मिलाप नहीं है,पुरानी जगह पर एक पुराने घर में भी पूरा क़स्बा हमेशा आमंत्रित रहता है क्यूंकि दिलों के तार ज्यादा मजबूती से जुड़े हैं.आज के कंक्रीट के जंगले के निवासियों के घर में एक पालतू कुत्ते का बच्चा है तो पुरानी जगह पर चिड़ियों का कलरव,मवेशियों की चहल-पहल और प्रकृति का अप्रतिम सौंदर्य है दिनभर निहारने के लिए.आज घरों से ज्यादा दिलों में दूरियां है बड़े शहरों में,पुरानी जगह आज भी दिल के तार जुड़े हुए दिखाई देता हैं.रह रहकर लगता है की शायद मेरी अंतर-आत्मा इस कंक्रीट के जंगले में क़ैद होने के लिए नहीं है...मुझे तो फिर वोही पुराने दिन और पुरानी यादें वापस चाहिए.शायद मैं इस आधुनिक दुनिया की तरक्कियों से दूर हो जाऊं पर मेरे लिए वो मायने नहीं रखता.अपनों का साथ,उनका प्यार और आशीर्वाद किसी भी तरक्की से ज्यादा मूल्यवान है...और मुझे ख़ुशी है अपने इस चुनाव पर...लेकिन फिर यह सोचता हूँ की क्या और कोई भी ऐसा सोच पायेगा या पिसे रह जायेंगे बाकी लोग इस कंक्रीट के जंगले में...एक अंतहीन,जंगले,जिसमे कोई संवेदना नहीं,कोई भावना नहीं,बस चले जा रहे है सब भेड़ बकरियों की तरह ना जाने किस दिशा में....मैं खुश हूँ उस झुण्ड में मैं शामिल नहीं हूँ....

0 comments: