मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरियाँ....

Tuesday, June 21, 2011

उनको देखा नहीं,देखने की ख्वाहिश अभी जिंदा है,
उनकी हसरत में बाकी एक फरमाईश अभी जिंदा है,
खुद को तराश कर आजमाया तो बहुत मगर,
फिर भी ज़रा सी खुद की आज़माइश अभी जिंदा है...

उनको देख कर चेहरे पर आ जाती है जो रौनक,
वो समझते हैं "ग़ालिब" बीमार का हाल अच्छा है...

मुझे आता देख खुद को छिपा लिया उसने,
घर क्या लिया उसने मस्जिद के सामने,चाहत ने उसकी मुझे नमाज़ी बना दिया....

अपनी नज़र में मेरी निगाह फिर क्यूँ ढूंढते हो,
अपनी तन्हाई में मेरी कमी क्यूँ महसूस करते हो,
अपने एहसासों में मेरी छुअन क्यूँ तलाशते हो,
अपने लफ़्ज़ों से अक्सर यह फासले क्यूँ तय करते हो...

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