चलते-चलते यूँ ही,
अब तो लग रहा है कि चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिलों से भी बेहतर,
अब तो लगने लगे हैं ये रास्ते,
मीलों के सफ़र में,
हमसफ़र बन रहे हैं ये रास्ते,
खामोश सी ज़िन्दगी में,
हलचल सी ला रहे हैं ये रास्ते,
चलते रहे मीलों,जाना कहाँ है,ये नहीं है पता,
इतने हसीं से अब लगने लगे हैं ये रास्ते,
खो जाने को चाह रहा है ये दिल मीलों के उस सफ़र में,
जिस सफ़र को मेरे, मंजिलों से जोड़ रहे हैं ये रास्ते,
चलते रहे अगर,और ना हो किसी से वास्ता,
मीलों मील चलने पर मिलेगी मंजिल,और उस सफ़र के गवाह बनेंगे ये रास्ते,
कैसी खुद ही जागी ये बेखुदी,रास्तों में ढूँढ रहा है ये दिल एक ख़ुशी,
मिले ना जो ख़ुशी इन रास्तों पर,तो खुद ही ढूँढ लेगा दिल कुछ और नए रास्ते,
चलते-चलते यूँ ही,
अब तो लग रहा है कि चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिलों से भी बेहतर,
अब तो लगने लगे हैं ये रास्ते…
अब तो लग रहा है कि चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिलों से भी बेहतर,
अब तो लगने लगे हैं ये रास्ते,
मीलों के सफ़र में,
हमसफ़र बन रहे हैं ये रास्ते,
खामोश सी ज़िन्दगी में,
हलचल सी ला रहे हैं ये रास्ते,
चलते रहे मीलों,जाना कहाँ है,ये नहीं है पता,
इतने हसीं से अब लगने लगे हैं ये रास्ते,
खो जाने को चाह रहा है ये दिल मीलों के उस सफ़र में,
जिस सफ़र को मेरे, मंजिलों से जोड़ रहे हैं ये रास्ते,
चलते रहे अगर,और ना हो किसी से वास्ता,
मीलों मील चलने पर मिलेगी मंजिल,और उस सफ़र के गवाह बनेंगे ये रास्ते,
कैसी खुद ही जागी ये बेखुदी,रास्तों में ढूँढ रहा है ये दिल एक ख़ुशी,
मिले ना जो ख़ुशी इन रास्तों पर,तो खुद ही ढूँढ लेगा दिल कुछ और नए रास्ते,
चलते-चलते यूँ ही,
अब तो लग रहा है कि चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिलों से भी बेहतर,
अब तो लगने लगे हैं ये रास्ते…
कवि:-मोहित कुमार जैन
०५-०६-२०११
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