महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग ११

Friday, June 10, 2011

हसरत है तुझे सामने बैठे देखूँ,
मैं तुझसे मुखातिब हूँ,तेरा हाल भी पूछूँ,
तू अश्क बनके मेरी आँखों में समां जा,
मैं आइना देखूँ तो तेरा ही अक्स देखूँ...

कौन कहता है मुझे दर्द का एहसास नहीं,
ज़िन्दगी उदास है जो तू मेरे पास नहीं,
मैं मांग के न पियूँ,
मगर ऐसा तो नहीं की मुझे प्यास नहीं....

अपनों को जब अपने खो देते है,
तन्हाई में वो रो देते हैं,
क्यूँ पलकों पर बिठाते हैं लोग,
जो आपकी आँखों को आकर भिगो देते हैं....

समय की बहती धारा में तुमने जो मेरा साथ दिया,
आँखों में पलते सपनों को मैंने भी महसूस किया,
भरसक पूरे होंगे सपने,मैंने ये संकल्प लिया....

हम आपके सीने में दिल बनके धड़कते हैं,
मुमकिन ही नहीं हमको सीने से जुदा करना....

ग़ैरों को दर्द बताने की ज़रुरत क्या है,
अपने झगडे में ज़माने की ज़रुरत क्या है,
ज़िन्दगी वैसे भी कम है मोहब्बत के लिए,
रूठकर वक़्त गँवाने की ज़रुरत क्या है.....

आँखों की जुबां समझ नहीं पाते,
होंठ हैं मगर कुछ कह नहीं पाते,
अपनी बेबसी किस तरह कहें,
आप वो हैं जिनके बिना हम रह नहीं पाते...

किसने चेहरे से पर्दा उठाया,
चाँद को शर्म आने लगी,
तारों ने नज़रें छुपा ली,
चांदनी मुस्कुराने लगी....

ज़िन्दगी का राज़,राज़ रहने दीजिये,
जो भी हो ऐतराज़,ऐतराज़ रहने दीजिये,
पर जब यह दिल,दिल से मिलना चाहे,
तो जान यह मत कहिये की आज रहने दीजिये...

वर्जना तोड़,आओ प्यार करें,
झिझक को छोड़ आओ प्यार करें,
प्रणय का पर्व,दे रहा दस्तक,
दिलों को जोड़ आओ प्यार करें...

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