मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरियाँ....

Tuesday, June 21, 2011

उनको देखा नहीं,देखने की ख्वाहिश अभी जिंदा है,
उनकी हसरत में बाकी एक फरमाईश अभी जिंदा है,
खुद को तराश कर आजमाया तो बहुत मगर,
फिर भी ज़रा सी खुद की आज़माइश अभी जिंदा है...

उनको देख कर चेहरे पर आ जाती है जो रौनक,
वो समझते हैं "ग़ालिब" बीमार का हाल अच्छा है...

मुझे आता देख खुद को छिपा लिया उसने,
घर क्या लिया उसने मस्जिद के सामने,चाहत ने उसकी मुझे नमाज़ी बना दिया....

अपनी नज़र में मेरी निगाह फिर क्यूँ ढूंढते हो,
अपनी तन्हाई में मेरी कमी क्यूँ महसूस करते हो,
अपने एहसासों में मेरी छुअन क्यूँ तलाशते हो,
अपने लफ़्ज़ों से अक्सर यह फासले क्यूँ तय करते हो...

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी............

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले ।


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन,

बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले ।


मुहब्बत में नही है फर्क जीने और मरने का,

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले ।


ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा ज़ालिम,

कहीं ऐसा ना हो यां भी वही काफिर सनम निकले ।


क़हाँ मैखाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़,

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले।

डॉ. कुमार विश्वास (कोई दीवाना कहता है)

Sunday, June 19, 2011





कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है,

मैं तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है !!!

समुँदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आसुँ प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता ,
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता !!!

मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूँ हैं
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है !!!

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा !!!

डॉ. कुमार विश्वास (पगली लड़की)




अमावास की काली रातों में दिल कुछ भर सा जाता है
जाने हर रात कलेजे में एक दर्द ठहर सा जाता है
आवाजें सब चुप रहती हैं, सन्नाटे चिल्लाते हैं
रोशनदानो के रस्ते अन्दर, स्याह अँधेरे आते हैं
तन्हाई का हर लम्हा, सदियों सा लम्बा लगता है
जिन्दा हूँ पर जीने का, एहसास अचम्भा लगता है
ऐसे में फिर यादों में वो, पगली लड़की आ जाती है
और उस पगली लड़की के बिन फिर वीरानी छा जाती है !!

अब तो जाने क्या होता है हर आहट से डरते हैं
खिड़की ,दरवाजे, छत, बिस्तर उपहास हमारा करते हैं
लिखने बैठू तो कविता के सब शब्द ख़तम हो जाते हैं
कलम चलाने से पहले ही कागज़ नम हो जाते हैं
घर का कोई काम नहीं जचता, न कारोबार सुहाता है
बस समय काटने को पड़ोस का लल्ला पढने आता है
अब ऐसे ही दिन उगता है ,और ऐसे ही दिन कट जाता है
अब घर की चार दीवारों में संसार ख़तम हो जाता है
जब शाम कभी तन्हाई में ये आँखे नम हो जाती है
ऐसे में फिर यादों में वो, पगली लड़की आ जाती है
और उस पगली लड़की के बिन फिर वीरानी छा जाती है !!

अब तो अपनी हर रचना की शुरुआत उसी से करता हूँ
शब्दों ,छंदों के चित्रों में सब रंग उसी के भरता हूँ
अब तो बाबा, भाभी ,दीदी सब बोलन से घबराते हैं
अब तो हमसे बिन पूछे ही रिश्ते ठुकराए जाते हैं
अब तो हम घर की चौखट के बहार से भी कतराते हैं
अब तो भैया भी शहर छोड़कर गाँव मनाने आते हैं
जब दिल में जीवन जीने की इक्षाएं ख़तम हो जाती है
ऐसे में फिर यादों में वो पगली लड़की आ जाती है
और उस पगली लड़की के बिन फिर वीरानी छा जाती है !!

हलाकि अब उसका मेरा साथ असंभव लगता है
लेकिन उसके न होने का एहसास भी दिल को लगता है
वो पगली लड़की अब भी मेरी ग़ज़लो में बसती है
उसकी सूरत उसकी सीरत अब भी इस दिल में बसती है
अब भी उसकी बांधी हुई ताबीज गले में लटकी है
अब भी उसकी साँसों से मेरी साँसे अटकी है
अब भी जाने क्यों खुद अपना ,हर शब्द अनाड़ी लगता है
अब भी पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है ,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है .

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग १५

हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं

नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आई

रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रुख़सती अच्छी लगी

एक फकीर ने कुछ इस तरह ज़िन्दगी की मिसाल दी
मुट्ठी में धूल लेकर हवा में उछाल दी !!

देखकर सोचा तो पाया फासला ही फासला
और सोचकर देखा तुम मेरे बहुत करीब थे

तेरे दामन ने सारे शहर को सैलाब से रोका
नहीं तो मेरे से आंसू समुन्दर हो जाये होते

वो जब भी मिलता है अंदाज़ ऐ जुदा होता है
चाँद सौ बार भी निकले तो नया होता है

सूरज , सितारे , चाँद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
और शाखों जो टूट जाये वो पत्ते नही है हम
आंधी से कोई कहे दी की औकात में रहे

कौन सी बात, कब ,कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है

मोहब्बत में अब वो पहले वाली बात कहा,
शहर में बस अब, जिस्म बिका करते है.

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

किसकी आवाज़ की रिमझिम से ये भीगा है बदन..
"हम तुम्हारे हैं " ये धीरे से कहा हो जैसे

मेरी बेकरारी देखी है ,कभी सब्र भी देख,
मैं इतना खामोश हो जाउंगा तू चिल्ला उठेगा.....

मेरे होठों को दे देना ज़माने भर की तिश्नगी, मगर उसके लबों को इक नदी की कैफियत देना
मैं उसकी आँख के हर खवाब में कुछ रंग भर पाऊँ, मेरे अल्लाह मुझको सिर्फ इतनी हैसियत देना॥

लिखता हूँ तो तुम ही उतरते हो क़लम से..
पढ़ता हूँ तो लहजा भी तुम आवाज़ भी तुम..!

तुझे ख्वाब ही में देखूं ये भरम भी आज टूटा
तेरे ख्वाब कैसे देखूं मुझे नींद ही ना आई...

हर बार तोडा दिल तूने इस क़दर संग-दिल
गर जोड़ता टुकड़े तो ताजमहल बनता

हाँथ मेरा देख कर ये मशवरा उसने दिया..
कुछ लकीरों को मिटाना अब ज़रूरी हो गया ||

कोई दीवाना कहता है... (नायिका की तरफ से)

न मै दीवाना कहती हूँ न तो पागल समझती हूँ
तेरी यादो को इन पैरों की अब पायल समझती हूँ
हमारे दिल की दूरी घट नहीं सकती कभी क्यूंकि
न तुम मुझको समझते हो न मै तुमको समझती हूँ

मोहब्बत एक धोका है मोहब्बत एक फ़साना है
मोहब्बत सिर्फ ज़ज्बातों का झूठा कारखाना है
बहुत रोई हैं ये आँखें मोहब्बत की कहानी पर
तभी तो जानती हैं कौन अपना और बेगाना है

समय की मार ने आँखों के सब मंजर बदल डाले
ग़म-ऐ-जज़्बात ने यादो के सारे घर बदल डाले
मै अपने सात जन्मो में अभी तक ये नहीं समझी
न जाने क्यूँ भला तुमने भी अपने स्वर बदल डाले

ये सच है की मेरी उल्फत जुदाई सह नहीं पायी
मगर महफ़िल में सबके सामने कुछ कह नहीं पाई
मेरी आँखों के साहिल में समुन्दर इस कदर डूबा
बहुत ऊंची उठीं लहरें पर बाहर बह नहीं पाई

एक ऐसी पीर है दिल में जो जाहिर कर नहीं सकती
कोई बूटी मेरे दिल के जखम अब भर नहीं सकती
मेरी हालत तो उस माँ की प्रसव-पीड़ा से बदतर है
जो पीड़ा से तो व्याकुल है मगर कुछ कर नहीं सकती

बहोत अरमान आँखों में कभी हमने सजाये थे
तेरी यादो के बन्दनवार इस दर पर लगाये थे
तुम्हारा नाम ले लेकर वो अब भी हम पे हस्ते है
तुम्हारे वास्ते जो गीत हमने गुनगुनाये थे !!

तुम्हारे साथ हूँ फिर भी अकेली हूँ ये लगता है
मै अब वीरान रातों की सहेली हूँ ये लगता है
न जाने मेरे जज्बातों की पीड़ा कौन समझेगा
मैं जग में एक अनसुलझी पहेली हूँ ये लगता है

इस दीवानेपन में हमने धरती अम्बर छोड़ दिया
उनकी पग रज की चाहत में घर आँगन छोड़ दिया
कुछ कुछ जैसे मीरा ने त्यागा अपना धन वैभव
कान्हा की खातिर ज्यूँ राधा ने वृन्दावन छोड़ दिया

ये दिल रोया पर आंसू आँख से बहार नहीं निकले
हमारे दिल से तेरी याद के नश्तर नहीं निकले
तुम्हारी चाहतो ने इस कदर बदनाम कर डाला
किसी के हो सके हम इतने खुशकिस्मत नहीं निकले

जब मेरी याद आये तो

मुझे बस इतना कहना है कभी मैं याद आऊं तो
कभी तन्हाई की रातें , तुम्हें ज्यादा सतायें तो
कभी तित्तली ना बोले तो , और जुगनू लौट जायें तो
कभी जब दिल भी भर जाये , कोई ना सुन ना पाये तो
कभी जब दोस्त साथी जो तुम से रूठ जायें तो
कभी जब खुद से लड़ कर थकन से चूर हो जाओ तो
कभी चाहते हुए भी खुद अकेले रो ना पाओ तो
फिर मेरे तसव्वुर से जो चाहे बातें कह देना
मेरे कांधे पे सर रख कर तुम जितना चाहे रो लेना
जब मैं खुद लौट जाऊं , तो अपनी दुनिया चले जाना
मगर बस इतना कहना है
कि जब भी दुःख या खुशियों में
हमें दिल से पुकारोगे
हमें तुम साथ पाओगे...

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग १४

Thursday, June 16, 2011

खुदा से मांगते तो मुद्दत गुज़र गयी,
क्यूँ न मैं आज उसको उसी से मांग लूं....

उसको खुदा से इतनी बार माँगा है,
की अब तो हम सिर्फ हाथ उठाते हैं,
तो सवाल फ़रिश्ते खुद ही लिख लेते हैं....

वो रूठते रहे,हम मनाते रहे,
उनकी राहों में पलकें बिछाते रहे,
उन्होंने कभी पलट कर भी न देखा,
हम आँख झपकाने से भी कतराते रहे...

यादों की धुंध में आपकी परछाई सी लगती है,
कानों में गूंजती शेहनाई सी लगती है,
आप करीब हो तो अपनापन है,
वरना सीने में सांसें भी परायी सी लगती हैं..

ना तुझको ख़बर हुई ना ज़माना समझ सका..
हम तुझ पर चुपके चुपके कई बार मर गये !!

अल्फाज़ तो बहुत हैं मेरी मोहब्बत बयां करने के...
वो मेरी ख़ामोशी नहीं समझा, अल्फाज़ क्या समझेगा !!

कारवां-ए-ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं..
ये किया नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं !!

कल रात चाँद हु-ब-हु तुझ जैसा था..
वही हुस्न, वही ग़ुरूर और वहीं दूर !!

पल भर में...

पल भर में तमाम उम्र की सोचें बदल जाती हैं,
जिन राहों पे चलते हैं,वो राहें बदल जाती हैं,
करने को क्या नहीं करते लोग मोहब्बत में,
सिर्फ हमारे लिए ही क्यूँ रस्में बदल जाती हैं,
वो ऐसी है की उसका नाम सुन ने के तसव्वुर से ही,
हमारी तमाम हसरतें बदल जाती हैं,
सोचता हूँ जाने कैसे कह पाऊंगा मैं उनसे,
मिलता हूँ जब तो दिल की सारी बातें बदल जाती हैं,
चाहे मंजिल दुश्वार हो और दूर भी,
हमसफ़र उनके जैसा हो तो मुश्किलें बदल जाती हैं,
यूँ तो रात का आलम हसीं होता है,मदहोश भी,
मगर चाँद को देखकर मेरी रातें बदल जाती हैं,
मत चाहो की मुझे आदत नहीं इतने चाहने वालों की,
यह न हो की लोग कहें,की जल्द ही हमारी आदतें बदल जाती हैं....

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग १३

आज भी उनकी नज़रों में राज़ वो ही था,
चेहरा वो ही था,चेहरे का लिबास वो ही था,
कैसे उनको मैं बेवफा कह दूं यारों,
आज भी उनके देखने का अंदाज़ वो ही था...........

भीगी आँखों से मुस्कुराने का मज़ा कुछ और है,
हँसते-हँसते पलके भिगोने का मज़ा कुछ और है,
बात कहके तो कोई भी समझा सकता है,
ख़ामोशी को गर कोई समझे तो मज़ा कुछ और है...

नब्ज़ मेरी देखकर,
मुझको इश्क का बीमार लिख गया,
मैं क्यूँ न हो जाऊं कुर्बान उस हकीम पर,
हो मेरे इलाज में दीदार उनका लिख गया............

आप न आये,आपकी याद आकर वफ़ा कर गयी,
आपसे मिलने की तमन्ना,सुकून तबाह कर गयी,
आहट कोई हुई तो सोचा दिल ने की मेरी दुआ असर कर गयी,
दरवाज़ा खोलकर देखा तो मज़ाक हमसे हवा कर गयी....

लफ़्ज़ों की तरह यादों की किताबों में मिलेंगे,
या बनके महक आपको गुलाबों में मिलेंगे,
मिलने के लिए हमसे ए दोस्त ज़रा ठीक से सोना,
आज हम दोस्तों से ख़्वाबों में मिलेंगे...

गीले कागज़ की तरह है ज़िन्दगी अपनी,
कोई जलाता भी नहीं,और कोई बहाता भी नहीं,
इस कदर अकेले रहे हैं राहों में दिल के,
कोई सताता भी नहीं और कोई मनाता भी नहीं...

ना जीना की ख़ुशी है,ना मरना का ग़म,
है अगर बस तो उनसे ना मिलने का ग़म,
जीते हैं इसी आस में ,कभी तो वो हमारे कहलायेंगे,
मरते नहीं इसीलिए की वो अकेले रह जायेंगे....

कुछ बिखरे सपने हैं,कुछ टूटी यादें हैं,
एक छोटा आसमान और एक उम्मीद की ज़मीन है,
यूँ तो बहुत कुछ है ज़िन्दगी में,
सिर्फ हम जिन्हें चाहते हैं,उन्ही की कमी है....

हमें आलम के अजीब उसूलों ने मार डाला,
कल काँटों ने मारा था,आज फूलों ने मार डाला....

अब क्या कहें ये लम्हा है कीमती कितना,
बहुत करीब बैठे हैं वो तसव्वुर में हमारे....

मेरी कब्र पर आये हैं वो फुर्सत निकालकर,
हम कैसे कह दें की उनसे नाराज़ हैं...

वो कागज़ के फूल थे,जो खुशबू ना दे सके,
हम यूँ ही बाग़ और बाग़बान को कोसते रहे....

कैसे समझायें हम अपने जज़्बात उनको,
कैसे बताएं दिल की बात उनको,
उनके हर ग़म,उनकी हर तकलीफ से वाकिफ हैं हम,
जाकर कोई हमारे भी तो हालात सुनाये उनको....

ए खुदा तुझसे दुआ है,मुझ पर एक एहसान कर दे,
किसी चंचल शोख हसीना से कहीं मेरी पहचान कर दे,
अगर वो नहीं आ सकती शर्म के मारे सामने हमारे,
तो अपने किसी करिश्मे से मुझे ही उनका मेहमान कर दे...

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग १२

Friday, June 10, 2011

चाँद के बिना अधूरी रात रह जाती है,
याद कुछ हसीं मुलाक़ात रह जाती है,
सच है ज़िन्दगी कभी रूकती नहीं,
वक़्त निकल जाता है पर बात रह जाती है....

ए काश बेवफाई हम भी कर पाते,
भूल जाने के खेल हम भी खेल पाते,
उन्होंने दिल पर चोट कुछ ऐसी की,
आँसू को छिपा कर काश हम भी रो पाते...

पल क्या,दिन क्या,सालों गुज़र गए,
एक तुम ही बस नहीं आयीं,कई मौसम गुज़र गए....

दीवाना हूँ मैं यार,बस दो-चार दिन और,
फिर ना हम रहेंगे,ना दीवानगी रहेगी.....

मेरी मय्यत दुनियावाले बस दफनाने ही वाले हैं,
तेरी दुनिया सलामत रहे,हम तो जाने वाले हैं.....

ना मालूम था जिस पर है नाज़ हमको,
हमें एक दिन वो ही तकदीर रुलाएगी,
जिसे प्यार समझता रहा यह दीवाना अब तक,
उसका वो प्यार ही उसकी दीवानगी कहलाएगी......

तुझे दिल दिया जो हमने,बस यही एक भूल कर बैठे,
तेरी ख़ुशी के लिए संगदिल हम हर ग़म कुबूल कर बैठे...

दिन गुज़रते रहे हमरे,और रातें सुहानी जाती रहीं,
याद करके हरपाल तुमको,आँखें हमारी अश्क बहाती रहीं....

शायरी को क्या पढ़ती हो,कभी इस दिल को पढ़ कर देखो,
ग़म ज्यादा ख़ुशी कम मिलेगी,दो कदम तुम भी बढ़ कर देखो...

अपनी मोहब्बत की दास्ताँ हम सबसे छुपाये बैठे हैं,
एक उनकी ख़ुशी की खातिर,हम हर ग़म अपनाए बैठे हैं....

तुम्हारे दिल की बात हम जान ही जायेंगे,
मुँह से चाहे ना बोलो,इशारे पहचान जायेंगे....

इश्क ही मज़हब हमर,इश्क ही खुदा है,
मंजिल तो एक है हमारी,फिर हम क्यूँ जुदा हैं...

सुनसान था यह दिल,जब तक कोई दिलदार ना था,
खुद को अकेला महसूस करते थे,जब तक तुमसे प्यार ना था....

पूछते हैं हम खुदा से,हम पर ही क्यूँ मजबूरी होती है,
इतने करीब रहने पर भी,क्यूँ यह ज़ालिम दूरी होती है...

अगर ज़िन्दगी में जुदाई ना होती,
तो कभी किसी की याद आई ना होती,
साथ ही गुज़रता हर लम्हा जो शायद,
रिश्तों में यह गहराई न होती....

आज आसमान के तारों ने मुझसे पूछ लिया,
क्या तुम्हे अब भी यकीन है उसके लौट आने का,
मैंने मुस्कुराकर कहा,तुम लौट आने की बात करते हो,
मुझे तो अब भी यकीन नहीं है उसके जाने का....

तेरी आँखों में जो नमी सी छाई है,
वो मेरे दूर होने की गवाही है,
याद इतना भी न करो मुझे,
हिचकियाँ ले लेकर मेरी जान पर बन आई है...

दिल जलाकर मेरा मुस्कुराते हैं वो,
अपनी आदत से कब बाज़ आते हैं वो,
पूछ लेते हैं मुझसे हर राज़ मेरा,
अपनी हर बात मुझसे छिपाते हैं वो...

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग ११

हसरत है तुझे सामने बैठे देखूँ,
मैं तुझसे मुखातिब हूँ,तेरा हाल भी पूछूँ,
तू अश्क बनके मेरी आँखों में समां जा,
मैं आइना देखूँ तो तेरा ही अक्स देखूँ...

कौन कहता है मुझे दर्द का एहसास नहीं,
ज़िन्दगी उदास है जो तू मेरे पास नहीं,
मैं मांग के न पियूँ,
मगर ऐसा तो नहीं की मुझे प्यास नहीं....

अपनों को जब अपने खो देते है,
तन्हाई में वो रो देते हैं,
क्यूँ पलकों पर बिठाते हैं लोग,
जो आपकी आँखों को आकर भिगो देते हैं....

समय की बहती धारा में तुमने जो मेरा साथ दिया,
आँखों में पलते सपनों को मैंने भी महसूस किया,
भरसक पूरे होंगे सपने,मैंने ये संकल्प लिया....

हम आपके सीने में दिल बनके धड़कते हैं,
मुमकिन ही नहीं हमको सीने से जुदा करना....

ग़ैरों को दर्द बताने की ज़रुरत क्या है,
अपने झगडे में ज़माने की ज़रुरत क्या है,
ज़िन्दगी वैसे भी कम है मोहब्बत के लिए,
रूठकर वक़्त गँवाने की ज़रुरत क्या है.....

आँखों की जुबां समझ नहीं पाते,
होंठ हैं मगर कुछ कह नहीं पाते,
अपनी बेबसी किस तरह कहें,
आप वो हैं जिनके बिना हम रह नहीं पाते...

किसने चेहरे से पर्दा उठाया,
चाँद को शर्म आने लगी,
तारों ने नज़रें छुपा ली,
चांदनी मुस्कुराने लगी....

ज़िन्दगी का राज़,राज़ रहने दीजिये,
जो भी हो ऐतराज़,ऐतराज़ रहने दीजिये,
पर जब यह दिल,दिल से मिलना चाहे,
तो जान यह मत कहिये की आज रहने दीजिये...

वर्जना तोड़,आओ प्यार करें,
झिझक को छोड़ आओ प्यार करें,
प्रणय का पर्व,दे रहा दस्तक,
दिलों को जोड़ आओ प्यार करें...

मेरी चाहत....

हज़ारों जुगनू हों तो भी चाँद कि रौशनी कभी कम ना होगी,
दूर हुए तो क्या,हमारी मोहब्बत कभी कम ना होगी,
जान जाए तो भी ग़म नहीं,
वफायें हमारी कभी कम ना होगी,
मेरे महबूब तेरी दीवानगी कि क़सम,
अँधेरा दुनिया का छाया तो भी,
मेरे दिल में तुम्हारी यादें कभी कम ना होगी,
तेरे नूर से रौशन है यह दुनिया,
क़यामत के आखरी मोड़ तक मेरी ये चाहत तेरे लिखे कभी कम ना होगी......

कवि:-मोहित कुमार जैन
१०-०६-२०११

कौन है वो....

कौन है जो एक साए कि तरह मेरे दिल को छू जाती है,
कभी पास से,कभी दूर से,
एक आवाज़,एक नगमा,एक गीत बनकर
मेरी रग-रग में समा जाती है,
कौन है जो मेरी तन्हाई का एहसास दिलाती है,
खालीपन-सूनापन छोड़ जाती है,
कौन है जो मुझमे होकर भी मेरे साथ नहीं है,
मैं उसे देखना चाहता हूँ,
मैं उसे जानना चाहता हूँ,
मैं अपनी उँगलियों से उसके चेहरे को छूना चाहता हूँ,
मैं उसे अपने ख़्वाबों में अपने पीछे पाता हूँ,
उसे देखने को पलटता हूँ,तो तस्वीर बन जाता हूँ,
ओर फिर खुद को भूल जाता हूँ,
हो सकता है कि वो तुम हो..........


कवि:-मोहित कुमार जैन
१०-०६-२०११

किस्मत से..

दुनिया की इस महफ़िल में मोहब्बत मिलती है किस्मत से,
बना दो ज़िन्दगी को जन्नत,
ऐसी चाहत मिलती है किस्मत से,
छिपा लो एहसास के उन लम्हों को महकती फिजाओं में,
कर दो निसार खुशियों को प्यार कि उन बाहों में,
निभाना साथ उस दिल का,
धड़कता है जो तुम्हारे लिए बेरहम इस दुनिया में,
क्यूंकि साँसें भी मिलती हैं किस्मत से..

कवि:-मोहित कुमार जैन
१०-०६-२०११

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग १०

ज़िन्दगी काँटो भरा सफ़र है,
हौसले ही उसकी पहचान है,
रास्ते पर तो सभी चलते है,
जो रास्ता बनाये वो इंसान है...

थी उम्मीद खुशियों की उनसे,
मगर वो भी हमें ग़म दे गए,
उन्हें मालूम था की हम उनके बिना मर जायेंगे,
फिर भी हमें जीने की क़सम दे गए...

अदा उनकी थी ओर दीवाने हम बने,
वफ़ा वो ना कर सके ओर बेवफा हम बने,
यूँ तो हज़ारों थे भीड़ में,
शुक्रिया उनका जो उनकी नज़रों का निशाना हम बने...

हर सागर के दो किनारे होते हैं,
कुछ लोग जान से भी ज्यादा प्यारे होते हैं,
यह ज़रूरी नहीं की हर कोई पास हो,
क्यूंकि ज़िन्दगी में यादों के भी सहारे होते हैं...

यूँ ना सजा दो यारों दिल लगाने की,
हद हो चुकी दिलों को जलाने की,
मिलता नहीं उन आँखों के सिवा सुकून दिल को,
कोई तो राह बताओ उसे भूल जाने की....

वो पल ऐसा था हम इनकार ना कर पाए,
दुनिया के खौफ से इकरार ना कर पाए,
ना थी ज़िन्दगी जिसके बिना मुमकिन,
उसने हमें छोड़ दिया ओर हम सवाल भी ना कर पाए....

कांच चुभे तो ज़ख्म रह जाता है,
दिल टूटे तो अरमान रह जाता है,
लगा तो देता है वक़्त मरहम इस दिल पर,
फिर भी उम्र भर एक निशाँ रह जाता है..

उसको बस इतना बता देना,
इतना आसान नहीं है तुम्हे भूल जाना,
तेरी यादें भी तेरे जैसी हैं,
उन्हें आता है बस रुला देना.....

सपने सारे तोड़ के बैठे हैं,
दिल के अरमान छोड़ के बैठे हैं,
ना कीजिये हमसे वफ़ा की बातें,
अभी-अभी दिल के टुकड़े जोड़ के बैठे हैं...

एक दिन ज़िन्दगी से पूछा,
वादे ओर यादों में क्या फर्क है,
जवाब मिला - वादे इंसान तोड़ता है,
ओर यादें इंसान को तोड़ती हैं..

खो ना जाएँ यह तारे ज़मीन पर......

अभी हाल ही में मैंने आमिर खान कि फिल्म "तारे ज़मीन पर" देखी.उस फिल्म में आमिर खान के प्रयासों ओर उसके ज़रिये बताई गयी बातों ने ह्रदय को गहराई तक स्पर्श किया.कई दृश्यों में ऐसा लगा मानो हमारे वास्तविक जीवन कि परिस्थितियाँ परदे पर उतर आई हों.

उस फिल्म में expectations पर ख़ास बातें कि गयी हैं जो कि अत्यंत हृदयस्पर्शी हैं.वास्तविकता में यदि हम आंकलन करें तो हम यह पायेंगे कि अपनी सामजिक संरचना को expectations के ज़रिये एक ऐसे जाल में तब्दील कर चुके है जहाँ फँसना सबकी मजबूरी जैसी हो गयी है.

हमने ऐसी मानसिकता ओर व्यवस्था बना ली है कि यदि हमारी expectations (स्वयं से या किसी ओर से) पूरी होती हैं तो हम expectations के दायरे को ओर बड़ा कर देते हैं ओर यदि यह expectations पूरी नहीं होती हैं तो हम सामने वाले के तमाम प्रयासों ओर म्हणत को नकार कर उसे नकारात्मक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं जैसे यह कोई अक्षम्य अपराध हो.

पर इन सब चक्करों में यह वास्तविकता भूल जाते हैं कि हर मनुष्य परमपिता परमेश्वर कि अनमोल कृति है,जिसमे कोई ना कोई विशेष गुण अवश्य मौजूद द्रेहता है.आवश्यकता यदि है तो तो बस उस खूबी को पहचान कर उसे सही तरीके से निखारने कि.उसके बाद जो जादुई परिणाम उभर कर सामने आयेंगे वो आज कि सामाजिक संरचना कि सोच से भी परे होंगे.

वास्तविकता तो यह है कि हर मनुष्य तारे-सितारों कि तरह है,बस उसे अपनी चमक को खोने नहीं देना चाहिए चाहे कितनी भी विषम परिस्थितियाँ जीवन में खड़ी हो जाएँ.

यदि हम अपनी expectations के दायरे को इस सामाजिक भूल-भुलैया से निकालकर स्वयं तक सीमित रखें अर्थात self-expectations कि ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें तो अवश्य ही मुमकिन है कि हर मनुष्य अपने-अपने क्षेत्र में ध्रुव तारे के समान चमके.

मेरा मन तो कहता है की मौजूदा सामाजिक संरचना को नकार कर ऐसा ही करना चाहिए जैसा मैंने अभी-अभी वर्णन किया परन्तु सिर्फ किसी व्यक्ति विशेष के प्रयत्न से संरचना का पुनर्गठन नहीं हो सकता. इसके लिए ज़रूरी है सबके सतत प्रयासों कि परन्तु तभी मस्तिष्क में यह विचार कौंध जाता है कि क्या वास्तविकता में ऐसा होना मुमकिन है या कई तारे यूँ ही ज़मीन पर खो जायेंगे?

जवाब मेरे पास शायद है भी ओर नहीं भी.....


लेखक:-मोहित कुमार जैन
२६-१२-२००७

मैं भी Santa Clause...........

"सांता क्लॉस" नाम एक ऐसा नाम है जिससे संपूर्ण विश्व के लगभग सभी लोग परिचित होंगे.क्रिसमस पर सभी लोगों को अगर किसी ख़ास का इंतज़ार सबसे ज्यादा रहता है तो शायद वो सांता क्लॉस ही है.सिर्फ बच्चे ही नहीं,अपितु बड़े भी सांता से गिफ्ट्स पाकर खिल उठते हैं.हर कोई बस यही सोचता है कि काश सांता से अगली मुलाकात के लिए एक साल लम्बा इंतज़ार नहीं करना पड़े.परन्तु ऐसा हो नहीं पाटा क्यूंकि वो सांता तो फिर अगले साल २५ दिसम्बर को ही वापस आता है.

मगर हम क्या कभी यह सोचते हैं कि सांता को हम अपने कार्यों से पूरे साल अपने करीब महसूस कर सकते हैं,बस ज़रुरत है सही कदम उठाने कि.मगर कैसे?शायद मेरे यह कुछ विचार इन सवालों को हल करने में थोड़ी सी मदद करें.

क्यूँ ना हम कुछ ऐसा करें कि सांता क्लॉस कि मूल विचारधारा को अपने व्यक्तिगत जीवन में उतार कर कुछ क्रांतिकारी कदम उठाएं जो कि शायद एक मिसाल भी बन जाएँ.सांता क्लॉस मूलतः गिफ्ट बाँटकर लोगों को खुशियाँ देते हैं.ठीक वैसे ही यदि हम में से हर व्यक्ति अगर चाहे तो अपने अपने दिलों में हम भी एक अदद सांता को पैदा कर सकते हैं.एक ऐसा सांता जो कि हमारी अतिव्यस्त दिनचर्या में से थोडा वक़्त चुराकर निशक्त जनों कि थोड़ी सी मदद अपने सामर्थ्य के अनुसार करे.फिर भले ही वो मदद छोट हो या बड़ी.वो मदद पैसों से हो या भावनात्मक सहारे से,परन्तु यदि हर व्यक्ति ऐसा कुछ करने कि कोशिश मात्र भी अगर शुरू कर दे तो हमें सांता क्लॉस के इंतज़ार में एक साल नहीं बिताना पड़ेगा,क्यूंकि हम सब ही कहीं ना कहीं,किसी ना किसी के लिए रोज़ ही सांता क्लॉस बनकर सामने आ जायेंगे.

ऐसा करके ना केवल हम किसी कि तकलीफों को दूर कर उसके होठों को मुस्कराहट प्रदान करेंगे बल्कि उन लोगों को जीवन कि अनमोल खुशियाँ भी देंगे.ज़रा सोचिये,हर व्यक्ति के एक छोटे से प्रयास से चारों ओर खुशहाली फ़ैल सकती है.सारा वातावरण ख़ुशी में सरोबार हो सकता है.ओर यह तो सभी जानते हैं कि खुशनुमा वातावरण हमारे उन्नत क़दमों को कितनी ताक़त प्रदान करता है.यही खुशनुमा वातावरण देश के हर नागरिक को अपनी काबलियत का भरपूर इस्तेमाल कर स्वयं की एवं देश की तरक्की के लिए पुरजोर प्रयास करने को बाध्य करेगा जिससे हम वास्तविकता में एक ऐसी आंतरिक ख़ुशी का अनुब हव करेंगे जिसे शब्दों में बयान करना आसान नहीं है.

परन्तु क्या वास्तविकता में ऐसा कभी हो सकता है?ज़रा सोचिये?


लेखक:मोहित कुमार जैन
२५-१२-२००७

कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 7

यादें कभी बेवफा नहीं होती,
सूरज डूबे बिना रात नहीं होती,
कभी दिल मत तोडना किसी का,
क्यूंकि दिल के टूटने की आवाज़ नहीं होती..

हर एक सजदा मक़बूल-ए-खुदा हो जाए,
आपकी दुआ के संग रब की रज़ा हो जाए,
ज़िन्दगी में मिलें आपको वो खुशियाँ,
की हज़ारों साल तक ग़म आपसे खफा हो जाए....

ज़िन्दगी के हर मोड़ पर सुनहरी यादों का एहसास रहने दो,
सुरूर दिल में और जुबां पर मिठास रहने दो,
यही फलसफा है जीने का,कि ना रहो उदास,
ना किसी को उदास रहने दो...

काँटा ना होता तो फूलों कि हिफाज़त ना होती,
अँधेरा ना होता तो रौशनी कि ज़रूर ना होती,
अगर मिल जाती हर खुश इस दुनिया में,
तो दिल कि मुलाकात दर्द से ना होती...

हाथों में होती हैं लकीरें हज़ार,
किसी में ग़म तो किसी में खुशियों कि बहार,
ना जाने वो कौन सी लकीर है मेरे हाथ में,
जिसमें खुदा ने लिख दिया आप जैसे दोस्त का प्यार....

इश्क और दोस्ती मेरी ज़िन्दगी का गुमान है,
इश्क मेरी रूह,दोस्ती मेरा ईमान है,
इश्क पर कर दूँ फ़िदा,अपनी सारी ज़िन्दगी,
मगर दोस्ती पर तो मेरा इश्क भी कुर्बान है.....

गीत कि ज़रुरत महफ़िल में होती है,
प्यार कि ज़रुरत दिल में होती है,
बिना दोस्त के अधूरी है यह ज़िन्दगी,
क्यूंकि दोस्त कि ज़रुरत हर पर महसूस होती है......

तेरी जुदाई में दिल बेकरार ना करूँ,
तू हुक्म दे तो तेरा इंतज़ार ना करूँ,
बेवफाई करनी हो तो इस क़दर करना,
कि तेरे बाद मैं किसी ओर से प्यार ना करूँ...

आज हैं,कल ना जाने कहाँ होंगे,
हम वो परिंदे हैं जो आसमान में खो जायेंगे,
दिलों कि डोर से ऐसा ना बाँधो हमें,
कल ना होंगे तो आँसू निकल आयेंगे...

पूछो....

Thursday, June 9, 2011

कितनी सादगी है तुझमें ए हसीं,
ये तो गुलशन कि बहारों से पूछो,
कितनी खूबसूरती छिपी है तुझमे,
ये तुम इन नजारों से पूछो,

लोग समझ ना जाएँ कहीं प्यार अपना,
इसीलिए तुम ज़रा इशारों से पूछो,
किस हद तक किया हमने इंतज़ार तुम्हारा,
ये हमारी उम्मीदों के सहारों से पूछो,

झूठे बयानों ने किया है जुदा हमको,
ये बात अपने तरफदारों से पूछो,
कितना रोये हैं हम तुमसे बिछड़कर,
कभी ये हमारे अश्कों की धार से पूछो,

जला है पल-पल किस कदर दिल मेरा,
ये जुदाई की आग के अंगारों से पूछो,
रात-रात भर जागते हैं याद करके तुझे,
कभी आसमान के चाँद-सितारों से पूछो,

इस दिल से जलाया तुम्हारे घर की रोशनी को,
यह अपने घर के घनघोर अंधियारों से पूछो,
अपने सितमों का हिसाब बेरहम सनम,
हमको दी जो तुमने उन दुत्कारों से पूछो,

कैसे टकराता हूँ सर अपना लहू निकलने तक,
आकर यह हमारे घर की खड़ी दीवारों से पूछो,
बर्बादी की कहानी तुम मेरी,
जाकर मेरे अज़ीज़ यारों से पूछो....

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग ९

आज हर एक पल खूबसूरत है,
यादों में आपकी ही सूरत है,
कुछ भी कहें यह दुनिया वाले ग़म नहीं,
दुनिया से ज्यादा हमको आपकी ज़रुरत है....

हर सपने को अपनी साँसों में रखो,
हर मंजिल को अपनी बाहों में रखो,
हर जीत आपकी है बस,
अपने लक्ष्य को अपनी निगाहों में रखो...

खुशबू माँगी थी खुदा से,
वो हमें लाजवाब फूल थमा गए,
थोड़ी ख़ुशी मांगी जो दुआ में,
तो आपसे मिला कर वो हमें खुशनसीब बना गए..

दिल में आपकी हर बात रहेगी,
जगह छोटी है पर आबाद रहेगी,
चाहे हम भुला दें ज़माने को,
पर आपकी यह प्यारी सी दोस्ती हमेशा याद रहेगी...

वफ़ा कि उम्मीद तब तक ना कीजिये,
जब तक किसी से वफ़ा ना कीजिये...

साहिल कि तमन्ना किसे नहीं होती,
पर सागर का सफ़र भी ख़ास होता है...

कब्र बन गया है मेरे इश्क का महल,
इन्ही खंडहरों में मुझे फिर भी सुकून मिलता है...

कुछ पहले से ही बदनाम थे हम,
बाकी तेरी आरज़ू ने तबाह कर दिया.......

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग ८

कुछ रिश्ते ऊपरवाला बनाता है,
कुछ रिश्ते लोग बनाते हैं,
पर कुछ लोग बिना किसी रिश्ते के ही रिश्ता निभाते हैं,
शायद वही लोग दोस्त कहलाते हैं...

सामने हो मंजिल तो कदम ना मोड़ना,
जो मन में हो वो ख्वाब ना छोड़ना,
हर कदम पर मिलेगी कामयाबी तुम्हे,
बस सितारे छूने के लिए कभी ज़मीन ना छोड़ना..

ज़िन्दगी कि कश्ती कब लगेगी किनारे,
कब इसे मिलेंगी मनचाही बहारें,
जीना तो पड़ेगा ही, कैसे भी यारे,
कभी दोस्तों कि भीड़ में,तो कभी तन्हाई के सहारे..

जाने क्यूँ इस जहां में ऐसा होता है,
ख़ुशी मिले जिसे वो ही रोता है,
उम्र भर साथ निभा ना सके जो,
जाने क्यूँ प्यार उसी से होता है..

वो मुलाक़ात कुछ अधूरी सी लगी,
पास होकर भी एक दूरी सी लगी,
होठों पे हँसी,आँखों में नमी,
पहली बार किसी कि दोस्ती इतनी ज़रूरी सी लगी..

तुमने तुम्हारी जुल्फों को कुछ इस तरह बिखेरा है,
कि इक तरफ उजाला है,और इक तरफ अँधेरा है...

उनको हमे मोहब्बत नहीं ये हमने तब जाना,
जब उनकी मोहब्बत ने कर दिया हमको दीवाना....

Mr.India

आजकल वैज्ञानिक एक ऐसा परिधान डिजाईन करने में लगे हैं जिसे पहनकर मनुष्य गायब(या अदृश्य) हो सकता है,ठीक वैसे ही जैसे अनिल कपूर फिल्म मिस्टर इंडिया में हो जाते थे.

मनुष्य की यह अविश्वसनीय सफलता वाकई तारीफ के काबिल है पर क्या वास्तव में मनुष्य को ऐसी कोई खोज करनी चाहिए?क्या वास्तव में मनुष्य को गायब होने की ज़रुरत है?अगर इन सवालों का अर्थ हम अपने मन में झांककर खोजें तो अवश्य ही मिल जाएगा.

मुझे नहीं लगता की आज के युग में मनुष्य को गायब होने की कोई आवश्यकता है.इस भाग०दौद भरी ज़िन्दगी में सबकी अपनी अलग पहचान वैसे ही गायब हो जाती है.और ऊपर से हमारी व्यस्तता हमारे रिश्तों,हमारी भावनाओं, और हमारी संवेदनाओं को भी धीरे-धीरे गायब करती जा रही है.जब इतना कुछ "अच्छा" गायब हो रहा है तो ऊपर से मनुष्य भी अगर गायब हो जाए तो गज़ब हो जाएगा.ज़रूरी तो यह है की हम खुद को गायब करने के तरीके ईजाद करने की जगह आस-पास की बुराइयों को गायब करने के तरीके सोचें.हम सोचें की कैसे देश से भ्रष्टाचार,अपराध,भुखमरी,गरीबी गायब हो,कैसे घपले और घोटाले करने वाले नेताओं के बैंक अकाउंट से रुपैये गायब होकर गरीब जनता तक पहुंचे,कैसे हमारी कुंठित सोच गायब हो,कैसे सामाजिक कुरीतियाँ जैसे दहेज़,बलात्कार की घटनाएं आदि गायब हों.अगर वास्तव में किसी दिन यह सब गायब हो गया तो फिर हमारा जीवन इतना सुखमय हो जाएगा की किसी को भी गायब होने किए ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी.

और अगर मान लो की मनुष्य को गायब करने में सफलता हाथ लग भी गयी,तो भी इस खोज के दुष्परिणाम सामने नहीं आयेंगे,इस बात की क्या गारंटी है.कई मनुष्य गायब होने की इस नायब कला का इस्तेमाल अपने फायदे या अपराध बढाने के लिए भी कर सकते हैं.हमारी आधारभूत संरचना ही ढेह सकती है और भी कई दुष्परिणाम हो सकते हैं.

इसीलिए ज़रूरी है की हम गायब होकर अपनी जिम्मेदारियों से बचने का नया तरीका नहीं निकालें अपितु हिम्मत से मुश्किलों का सामना कर विजयश्री हासिल करें ताकि एक दिन हम सभी सच्चे अर्थों में मिस्टर इंडिया बन सकें.

जय-हिंद
लेखक:मोहित कुमार जैन
दिनाँक:-०८-०४-२००७

कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 6











उनकी हर एक अदा ने हमको दीवाना बना दिया,
जो शमा की याद में जल जाए वो परवाना बना दिया,
हमने भी कुछ ऐसा दीवानापन दिखाया,
की चाहत में उनकी एक नया अफसाना बना दिया...

वो पहली बार तुमने जब प्यार से मुस्कुरा कर मुझे देखा,
बस तभी से गुलशन में बहार छाई है,
उस एक अदा ने तुम्हारी जाने क्या जादू सा किया है,
की पतझड़ में भी सावन की फुहार आई है....

दिन के साथ रात नहीं होती,
सितारों से दिल की बात नहीं होती,
जिन्हें चाहते हैं हम जान से ज्यादा,
खुदा जाने क्यूँ उनसे ही मुलाक़ात नहीं होती...

उम्र की राह में इंसान बदल जाते है,
वक़्त की आंधी में तूफ़ान बदल जाते है,
सोचता हूँ की उन्हें इतना याद ना करूँ,
लेकिन आँख बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं..

ग़म के आँसू दिखा नहीं सकते,
अपना हक उन पर जता नहीं सकते,
कितने अनमोल हैं वो हमारी निगाहों में,
ये बात हम उनको बता नहीं सकते....

सौ सौ उम्मीदें बंधती हैं एक-एक निगाह पर,
मुझको प्यार से ऐसे ना देखा करे कोई...

देखो ना आँख भर के किसी की तरफ कभी,
तुमको खबर नहीं जो तुम्हारी नज़र में है...

फिज़ा को जैसे कोई राग चीरता जाए,
तेरी निगाह दिल में ऐसे उतर गयी...

जैसे मेरी निगाह ने देखा ना हो तुझे,
महसूस ये हुआ तुझे हर बार देख कर...

कोई ए खुदा इतना प्यारा ना हो,
कि बिछड़ जाएँ तो जी सकें,ना मर सकें....

कहा नहीं जाता तुझको बेवफा भी,
ज़रा सी कमी इधर भी थी...

जिनको है मलाल कि कोई हमसफ़र नहीं,
मैं कहता हूँ कि उनको खुदा ने ज़िन्दगी बख्श दी...

सुकून-ए-दिल ढूँढने जाऊं मैं किस तरफ,
यहाँ भी,वहाँ भी,तेरी यादें हर तरफ...

जब तन्हा कभी होता हूँ,दिल को तुम्हारी याद सताती है,
जब देखता हूँ आइना,उसमे भी सूरत तेरी ही नज़र आती है...

जिसे हमने चाहा था,जबसे वो बेवफा बन गया,
ये दिल,दिल ना होकर एक चिराग-ए-ग़म बन गया...




सांता क्लॉस के नाम एक पत्र..............





आदरणीय सांता क्लॉस,

आज तक आप को बच्चों के कई पत्र मिले होंगे परन्तु शायद मुझ जैसे एक व्यस्क का पत्र बहुत ही कम मिला होगा.मेरा यह पत्र आपके लिए इसीलिए है क्यूंकि मैं इस क्रिसमस पर आपसे कुछ विशेष गिफ्ट चाहता हूँ जिसकी विनती इस पत्र के माध्यम से करना चाहता हूँ.

यूँ तो आप इश्वर के दूत की तरह हैं जो सबको खुशियाँ बाँटता है एवं सभी की भावनाओं का ख़याल रखता है और इसीलिए आज आपसे मैं एक अनमोल तोहफे की माँग करने जा रहा हूँ.

प्यारे सांता,मैं आपसे कहना चाहता हूँ की इस क्रिसमस पर मुझे और समस्त मानव जाति को प्रभु की तरफ से एक ऐसा वरदान दो की सभी व्यक्ति सदा खुशहाली का अनुभव करें.हम तुच्छ प्राणी,जाति-धर्म-दौलत आदि जैसी बेतुकी बातों में उलझना भूलकर आपसी प्रेम एवं शान्ति के साथ जीवन व्यतीत करते हुए सदैव अपने देश,अपने परिवार और स्वयं की उन्नति के लिए कार्य करें.मन में कभी भी किसी भी प्रकार का राग-द्वेष किसी के लिए भी पैदा ना हो.

हर मानव सांता क्लॉस जैसा सच्चा,हँसमुख,सहृदय प्रतिबिम्ब अपने मन में विकसित करे और आस-पास मौजूद,नि:शक्त जनों की मदद कर स्वयं और उन लोगों की वास्तविक ख़ुशी का कारण बने.

झूठे आडम्बरों में ना उलझ कर हम सादगी पूर्ण जीवन जियें एवं प्रकृति का अनुचित दोहन रोकने में सदा तत्पर रहे.ना तो हम राजनीतिक चालों में कभी फँसें,और ना ही हमारे बीच कोई व्यर्थ के मतभेद और मनभेद खड़े कर हमारी कमियों का फायदा उठाने की कोशिश करे.

हम स्वयं की कमज़ोरियों को ताक़त में तब्दील कर सर्वप्रथम स्वयं को एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश करें और उसके बाद उस परम पिता परमेश्वर का धन्यवाद अदा करें जिसने हमें तस्वीर के रंगों सी रंग बिरंगी प्रकृति और अदभुत जीवन दिया.

ना कभी कोई किसी की अक्षमता पर हँसे, ना कोई किसी से बैर भाव रखे.ना मन में जलन की भावना हो और ना किसी को हम कभी नीचा दिखायें.

मैं जानता हूँ की मैंने जो माँगा है वो आपकी और प्रभु की देने की क्षमता से बहुत तुच्छ परन्तु फिर भी आज के ज़माने में कठिन है,परन्तु यदि आप कोशिश करके देखें तो शायद दुनिया का एक नया चेहरा उभर सके पुराने सारे नकाब उतार कर.

आशा है आप मेरे गिफ्ट के बारे में प्रभु से विस्तार पूर्वक चर्चा ज़रूर करेंगे.

आपके जवाब का प्रतीक्षार्थी,
एक तुच्छ मानव
२६-१२-२००७

पहली बारिश और पहला प्यार............


दो बातें.....पहली बारिश और पहला प्यार,किसी भी इंसान को एक सुखद अनुभूति देती ही है. आखिर ऐसी क्या कशिश है इन दोनों में जो हमारे मन में एक अलग उत्साह का संचार हो जाता है इन्हें देखकर,हम जीवन का आनंद एक नए अंदाज़ में उठाने लगते हैं इनके हमारी ज़िन्दगी में दाखिल होते ही.कुछ न कुछ बात तो ज़रूर है.शायद जानी-पहचानी सी या शायद कोई अनकही अबूझ पहेली सी.

साल की पहली बारिश कुछ इसीलिए ख़ास होती है क्यूंकि ये न केवल गर्मी और उमस भरे माहौल से निजात दिलाती है बल्कि एक नया उत्साह भी संचारित करती है सूखे,धूल,उमस से जूझते आम इंसानों,किसानो,जानवरों,यहाँ तक की पेड़-पौधों में भी.यह एक प्राकृतिक सन्देश की तरह होती है,एक नए सृजन का सन्देश,तकलीफ भरी धुप पर शीतलता की हवा की विजय का सन्देश,बेचैन जनमानस को नया चैन और आराम का पथ दिखाने वाली शीतल बूंदों के त्याग का सन्देश जो बरसती रहती हैं निरंतर बिना भेद-भाव के,अपने मूल रूप में,बिना अपने परिणाम की परवाह किये की क्या वे किसी की प्यास बुझा पाएंगी या सड़क पर कीचड बनकर ही सिमट कर रह जायेंगी.

ठीक कुछ इसी तरह ही पहला प्यार भी मनुष्य का संपूर्ण जीवन ही बदल देता है.अकेले ही ज़िन्दगी के तूफानों से लड़ते,सभी परेशानी उठाते मनुष्य को सहारा देता है पहला प्यार,जिसके आने से मानो ज़िन्दगी के मायने ही बदल जाते है.जब हम किसी को अपने साथ खड़ा पाते हैं,कोई ऐसा हमें नज़र आता है जिसे हमारी चिंता है,जिसे हम पर पूर्ण विश्वास है तो अपने अप्प ही हमारे अन्दर एक ऐसी आलौकिक ऊर्जा का संचार होता है की हम हर कठिनाई का डट कर मुकाबला कर उससे पार पाने को तैयार हो जाते हैं.

यह कैसी अजीब सी जादुई शक्ति है पहले प्यार और पहली बरसात की बूंदों में जो हमें न केवल लड़ने की प्रेरणा देती हैं अपितु विजयपथ पर हमारा पथ-प्रदर्शक बन हमें अकेलेपन से भी मुक्त कराती हैं.

और अगर किसी को अपना पहला प्यार,पहली बारिश में मिला हो तो इस प्राकृतिक और मानवीय ताक़त का समागम अविस्मर्णीय होता है.बहुत किस्मत वाले होते हैं वोह लोग जो एक साथ,एक ही पल में पहले प्यार और पहली बारिश दोनों का सुख भोग पाते हैं,पर कुछ बदनसीब ऐसे भी होते हैं जिन्हें शायद दोनों ही नसीब नहीं होते और कुछ बदनसीब(या आधे बदनसीब) ऐसे भी होते हैं जिन्हें पहली बारिश की शीतलता तो भिगो देती है पर पहले प्यार की नाकामयाबी की आग ह्रदय को जला देती है.पर ऐसी स्तिथि पर विजय प्राप्त करने वाला ही सच्चे अर्थों में जीवन का आनंद उठा पाता है क्यूंकि ज़िन्दगी तो चलते रहने का नाम है ना की नाकाम पहले प्यार की याद में रोकर पहली बारिश का मज़ा भी किरकिरा करने में.लेकिन यह बात कहना जितनी आसान लग रही है,हकीकत में उतनी ही तकलीफदायक होता है पहले प्यार को भूल पाना.शायद इस बात को वो लोग जानते हैं जिन्होंने अपना पहला प्यार खोया होता है,जैसे की........


लेखक:-मोहित कुमार जैन
१८-०५-२००७

अच्छा लगता है...

Wednesday, June 8, 2011



अच्छा लगता है,जब तुम तारीफ करते हो मेरी,
जब तुम्हे यद् रहती है हमारी शादी की सालगिरह,
जब तुम यूँ ही बिना किसी वजह के फ़ोन करते हो,
या फिर जब तुम कभी मुझे यूँ ही चुपचाप देखते हो,
यह सोचकर कि मैं नहीं देख रही तुम्हे देखते हुए

अच्छा लगता है जब तुम ट्रेन में,
खिड़की वाली सीट मेरे लिए छोड़ देते हो,
या कभी जब तुम मेरे माथे पर आई लट सँवार देते हो

अच्छा लगता है जब रात को छोटू के रोने पर,
तुम उसे बाहों में लेकर छत पर टहलते हो,यह सोचकर,
कि मुझे पता नहीं चल सके,अपने अंश कि पीड़ा और अपने साथी के त्याग का

अच्छा लगता है जब तुम सन्डे को किचन में मेरा हाथ बँटाते हो,
या फिर शौपिंग करते हुए मेरी राय लेने के लिए मुझे देखते हो

अच्छा लगता है जब तुम ज़िन्दगी के हर छोटे बड़े फैसले में,
मुझे भी शामिल करते हो,
और एक अच्छे पति,अच्छे पिता,और एक अच्छे इंसान
कि ज़िम्मेदारी हर मोड़ पर बखूबी निभाते हो

अच्छा लगता है जब शाम को घर आने के बाद भी,
तुम फिल्म जाने के लिए तैयार रहते हो,
या फिर जब मेरे जन्मदिन पर तुम मुझे,
अपनी लिखी हुई कविता सुनाते हुए गुलाब का फूल देते हो

अच्छा लगता है जब तुम्हे पति के रूप में पाने,
पर लोग मेरी किस्मत की तारीफ करते है,
या फिर जब तुम सबके सामने कहते हो,
की हम तो ऐसे आशिक हैं जो अपनी संगिनी की हर धड़कन और उसकी साँसों में रहते हैं,

अच्छा लगता है,यह सब बहुत अच्छा लगता है....


कवि:-मोहित कुमार जैन
(२००६)

कविता....




निगाहें निगाहों से मिलकर तो देखो,
नए लोगों से रिश्ता बनाकर तो देखो,
हसरतें दिल में दबा कर रखीं हैं किसलिए,
कभी अपने होठों को हिलाकर तो देखो,
खामोश रहने से भी कभी कुछ हासिल हुआ है,
दिल कि बात किसी को बताकर तो देखो,
दिल कि बात किसी को बताकर तो देखो,
आसमान सिमट जाएगा तुम्हारे आग़ोश में,
चाहत कि बाहें ज़रा फैलाकर तो देखो.....

एक कविता....




एक दिन जब शाम ढल रही थी,
मैं छत की मुंडेर पर बैठा हुआ था,
देख रहा था,घोंसलों में वापस जाते पंछियों को,
देख रहा था पवन के संग झूमती बदलियों को,
सोच रहा था की कैसा हसीं था वो लम्हा,वो पल,
जब साथ तुम मेरे थीं,और रात थी बोझिल,
उस सामान को भी तुमने बहारों सा हसीं बना दिया,
एक बार जो तुम मुस्कुराए तो सारा आलम शर्मा गया
मैं देखता रहा तुम्हे उस रात की तन्हाई में,
मैं सोचता रहा तुम्हे अपने दिल की गहराई में,
तब होश आया मानो मुझे नींद से,
जब हवा में उड़ता तेरा आँचल,मेरी साँसों को महका गया,
तुम बोलती रहीं और होठों से फूल झरते रहे,
और मैं माली की तरह उन फूलों को माला में पिरोता रहा,
ये रूप तुम्हारा,ये देह तुम्हारी,
जैसे हो तुम अप्सरा कोई स्वर्ग की,
हूँ खुशनसीब मैं कितना कि प्यार मिला है मुझे तुम्हारा ज़िन्दगी में,
पर रेत के घरोंदे कि तरह उजाड़ गया वो ख्वाब एक ही पल में,
जब दूर हो गयीं तुम मुझसे इस दुनिया कि भीड़ में,
आज भी रात भर जागता हुआ मैं सोचता हूँ तुम्हारे ही बारे में,
बैठा रहता हूँ छत कि मुंडेर पर शाम ढलने पर,
देखता रहता हूँ घोंसलों में वापस जाते पंछियों को,
देखता रहता हूँ पवन के संग झूमती बदलियों को

कवि:-मोहित कुमार जैन
(२००६)

तुमसे मिलकर.............



तुमसे मिलकर ऐसा लगा मानो मैं अपने जीवन की प्रेरणा या एक मुकम्मल मकसद से मिल रहा हूँ तुम्हारे साथ की हुई बातें और बिठाये हुए लम्हों ने मानो मेरे जीवन को एक नयी दिशा प्रदान की है तुमसे मिलकर ना जाने क्यूँ जीवन के उन अनछुए एहसासों ने अंगडाई लेना शुरू कर दिया है जिन्हें आज तक कोई समझ ही नहीं सका पर तुम्हारा साथ, तुम्हारा विश्वास पाकर मेरी भावनाओं ने भी उम्मीदें सजाना शुरू कर दी हैं

आजतक ना जाने क्यूँ जो अकेलापन जीवन में महसूस होता था,अब तुमसे मिलकर उस अकेलेपन से भी मुझे राहत मिलने लगी है और ऐसा लगने लगा है जैसे मेरे अधूरे जीवन को पूरा करने के लिए ही शायद तुम मेरे जीवन में आई हो शायद ईश्वर की ही इच्छा का परिणाम है की मुझे तुम्हारे जैसी दोस्त एक तोहफे के रूप में मिली है जिसके साथ मैं जीवन की छोटी-छोटी खुशियाँ बाँटकर कुछ सुकून के पलों को अपनी यादों की किताब में संजो का रख सकता हूँ

आज जीवन के इस मोड़ पर तुम ही हमसफ़र, तुम ही दोस्त और तुम ही एक प्रेरणा के रूप में मुझे नज़र आती हो और सदा ही ईश्वर से मैं यह दुआ माँगता रहता हूँ की तुम ही मेरे जीवन में खुशियों की सौगात लेकर आओ और मैं भी तुम्हारे जीवन में खुशियों के रंग भर दूं

तुम मेरे जीवन की कविता के शब्द बन जाओ, तुम मेरी जीवन-गाथा की धुन बन जाओ, और मैं तुम्हे पाकर जीवन की हर ख़ुशी पा लूँ, बस यही दुआ मैं आज और आज के बाद हर पल खुदा से करूँगा

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी.....भाग ७

वक़्त की हो धूप या तेज़ हो आँधियाँ,
कुछ क़दमों के निशाँ कभी नहीं खोते,
जिन्हें याद करके मुस्कुरा दें ये आँखें,
वो लोग दूर होकर भी दूर नहीं होते..

तमन्ना करो जिन खुशियों को पाने की,
दुआ है की वो खुशियाँ आपके क़दमों में हो,
आपको वो सबकुछ हकीकत में मिले,
जो कुछ भी आपके सपनो में हो..

दर्द में कोई मौसम प्यारा नहीं होता,
दिल हो प्यासा तो पानी से गुज़ारा नहीं होता,
कोई देखे तो सही हमारी बेबसी को,
हम सभी के हो जाते हैं,पर कोई हमारा नहीं होता..

सबकी ज़िन्दगी में खुशियाँ देने वाले,
मेरे दोस्त की ज़िन्दगी में कोई ग़म ना हो,
उसको मुझसे भी अच्छा दोस्त मिले,
पर मिले तभी जब इस दुनिया में हम ना हों...

ओस की बूँदें फूलों को भीगा रही हैं,
सूरज की किरणे ताजगी जगा रही हैं,
हो जाओ आप भी इन में शामिल,
क्यूंकि एक प्यारी सी सुबह आपको जगा रही है...

कभी ज़िन्दगी के पन्नो को उलटकर देखिएगा,
आपको एक शख्स नज़र आएगा,
भूल जाओगे ज़माने के सारे ग़म,
जब हमारे साथ गुज़ारा वक़्त याद आएगा..

आज तेरी यादों को सीने से लगा के रोये,
अपने ख़्वाबों में तुझे पास बुलाकर रोये,
हज़ारों बार पुकारा तुझे तन्हाइयों में,
पर हर बार तुझे पास ना पाकर रोये..

सजती रहे खुशियों कि महफ़िल,
हर ख़ुशी सुहानी रहे,
आप ज़िन्दगी में इतने खुश रहे,
कि हर ख़ुशी भी आपकी दीवानी रहे...

कुछ मीठे पल याद आते हैं,
पलकों पर आँसू छोड़ जाते हिं,
कल कोई ओर मिले तो हमें ना भुलाना,
क्यूंकि दोस्ती के रिश्ते ज़िन्दगी भर काम आते हैं...

हर रास्ते का मुक़ाम नहीं होता,
दिल के रिश्ते का कोई नाम नहीं होता,
खोजा है आपको मन की रौशनी से,
आप जैसा दोस्त किसी के लिए आम नहीं होता...

ये रास्ते.............

Sunday, June 5, 2011






चलते-चलते यूँ ही,
अब तो लग रहा है कि चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिलों से भी बेहतर,
अब तो लगने लगे हैं ये रास्ते,

मीलों के सफ़र में,
हमसफ़र बन रहे हैं ये रास्ते,
खामोश सी ज़िन्दगी में,
हलचल सी ला रहे हैं ये रास्ते,

चलते रहे मीलों,जाना कहाँ है,ये नहीं है पता,
इतने हसीं से अब लगने लगे हैं ये रास्ते,
खो जाने को चाह रहा है ये दिल मीलों के उस सफ़र में,
जिस सफ़र को मेरे, मंजिलों से जोड़ रहे हैं ये रास्ते,

चलते रहे अगर,और ना हो किसी से वास्ता,
मीलों मील चलने पर मिलेगी मंजिल,और उस सफ़र के गवाह बनेंगे ये रास्ते,

कैसी खुद ही जागी ये बेखुदी,रास्तों में ढूँढ रहा है ये दिल एक ख़ुशी,
मिले ना जो ख़ुशी इन रास्तों पर,तो खुद ही ढूँढ लेगा दिल कुछ और नए रास्ते,

चलते-चलते यूँ ही,
अब तो लग रहा है कि चलने लगे हैं ये रास्ते,
मंजिलों से भी बेहतर,
अब तो लगने लगे हैं ये रास्ते…


कवि:-मोहित कुमार जैन
०५-०६-२०११

आँसू............



आते हैं जो आँख से आँसू,
उन्हें लगता यह अश्क नहीं पानी हैं,
मगर हम तो वो हैं जो कह देते,
इन आँसुओं के बहाने अपनी कहानी हैं..

इन्ही आँसुओं ने हर जगह,
एक मुकाम अपना बनाया है,
कोई समझे तो काम करते हैं यह,
कोई ना समझे तो बस ज़ाया हैं..

कोई आँसू से लिख देता मोहब्बत की इबारत है,
कोई आँसू से कर देता उस खुदा की ज़ियारत है,
कोई आँसू से दिल में मुक़ाम कर लेता है,
कोई आँसू से मोहब्बत का पैग़ाम भेज देता है,

कोई आँसू की कीमत जान,यह ज़मीं और आसमाँ क्या,
खुद की क़ायनात हिला सकता है,
मगर जो ना समझे कीमत इन आँसुओं की,
उस मेरे मेहबूब के लिए तो ये मोहब्बत एक गिला है,
और मैं कह रहा हूँ खुदा से,
की किस बेवफा से दिल लगा बैठा अनजाने में,
जिस से प्यार की उम्मीद करना भी एक सज़ा है.....


कवि:-मोहित कुमार जैन
०५-०६-२०११

उनको ये शिकायत है.......

Saturday, June 4, 2011





उनको ये शिकायत है,
कि हम उनसे मिले नहीं,
कोई पूछे उनसे,रोज़ ख़्वाबों में कौन दस्तक देने आता है,

उनको ये शिकायत है,
कि हम याद नहीं करते उन्हें,
कोई पूछे उनसे,रोज़ हिचकियाँ कौन लाता है,

उनको ये शिकायत है,
कि हमने दूरियां बढ़ा दी,
कोई पूछे उनसे,पल-पल उनकी यादों के सहारे कौन बिताता है,

उनको ये शिकायत है,
कि अब प्यार नहीं रहा हमें उनसे,
कोई पूछे उनसे,कि ग़ज़लों में ताजमहल कौन बनाता है,

उनकी हर शिकायत पर हमको
बस एक ही शिकायत है..
कि अब ऐतबार नहीं रहा उन्हें हम पे,
मगर दोस्तों इस शिकायत का,
अभी तक जवाब आना बाकी है.........


कवि:-मोहित कुमार जैन
०३-०६-२०११

उनका ख़्याल.....




उन्हें सोचकर ख्यालों में,
एक रौनक चेहरे पर आती है,
वो ऐसी होंगी,वो वैसी होंगी,
बस यही सोच सोच कर,
अब तो दीवाने दिल कि धडकनें बढती जाती हैं,

कभी ख्वाबों का हिस्सा थीं जो,
वो अब मुकम्मल होने वाली हैं,
मेरी ज़िन्दगी में आकर,
वो उसे सजाने वाली हैं,

अभी से इतना बेचैन हूँ मैं,
ना जाने उस पल क्या होगा,
जब सारी दुनिया छोड़ के उनका,
मेरे जीवन में आगमन होगा,

ऐ खुदा तेरी खुदाई कैसी है,
जिन्हें मिलना चाहता हूँ मैं बेचैनी से,
उन्ही से बस मुलाकात नहीं होती है,

कुछ तो कर इस दीवाने कि दीवानगी का इलाज,
कर ऐसा कोई करिश्मा कि वो मिल जाएँ मुझे आज,
और बनके मेरी हमसफ़र ज़िन्दगी में,
करें एक नयी शुरुआत का आगाज़...

कवि:-मोहित कुमार जैन
०३-०६-२०११

उधार की ज़िन्दगी.....





जी रहे हैं सभी यहाँ,
इक उधार की ज़िन्दगी
खूंटे पे टंगे उस पुराने कोट की तरह,
तार-तार सी ज़िन्दगी

उम्मीदों के बादल पर सवार,
मगर सपनों की बारिश कि आस नहीं दिल में,
ऐसी जी रहे हैं सभी,
बिना ऐतबार की ज़िन्दगी,

खुदा से आस लगाये हुए,
मगर भरोसे के दीपक को बुझा,
हर कोई जी रहा है अपनी ज़िन्दगी,
जैसे हो ये उधार की ज़िन्दगी,

कहता हूँ मैं यारों,अगर जीना ही है ज़िन्दगी को,
तो जियो खुल के,मस्त हो के,
हर पल का मज़ा लो,और मनाओ शुक्र,
की तुम्हारे पास है एक अनमोल रतन,
जिसे कहता हूँ मैं,परवरदिगार की ज़िन्दगी..

बिना मौत के खौफ़ के,
बिना हार के डर के,
जियो जैसे हर पल का ले रहे हो मज़ा,
और बना दो एक हसीं ख्वाब अपनी ज़िन्दगी...


कवि:-मोहित कुमार जैन
०३-०६-२०११

Book Review: The Leader Who Had No Title (Robin Sharma)

Friday, June 3, 2011



Have you ever thought, “I can’t wait until I get promoted so I can be in charge.”, or, “when I am the leader, I will do things differently”. Well, Robin Sharma’s excellent book, “The Leader Who Had No Title” is a book you should read. In a relatively short amount of time Sharma’s engaging story will have you understanding why it is imperative that each of us pursues a level of personal leadership regardless of titles or position. What I liked most about the book was that it went past just being a fun story to read, it actually provided actions that each of us can take to increase our ability to lead without a title. And by the way, if you do have a title, you should read this too. The first step in being an effective leader is to lead yourself exceptionally well. This book captures what it means to lead yourself exceptionally well.

As the story begins we find Blake Davis, a 30-ish, Iraq war veteran, who had struggled for years to find his place in this world, telling us his story of how he was able to turn his life around just be adopting the LWT (Lead Without a Title) philosophy. As Blake is languishing in his day to day chores working at a local bookstore he meets Tommy, a man that will change Blake’s life for ever. As they begin their relationship, Tommy walks Blake through what the LWT philosophy is all about. Then, for the remainder of the book Tommy takes Blake on a journey of personal discovery that will help Blake apply the LWT philosophy to his own life. This is where you will want to have a pad and pencil available to capture the truths that Tommy shares for your own life.

Sharma, via Tommy, tells us early on that the basic underlying truth of Lead Without a Title is that there is only one way a business will win in the new world of business today. That one way is to grow and develop the leadership talent of every single person throughout the organization faster than their competition. We cannot afford to only develop the leadership skills of those that have leader titles in the organization (like most organizations do). We need to have every person in the organization demonstrating leadership. Everyone must see themselves as part of the leadership team.

As the story progresses, Tommy takes Blake to meet four other LWT leaders. Each of these leaders take Blake through one of the four pillars of the LWT philosophy. At each stop Blake becomes more and more enamored with the philosophy and in thinking of ways to apply this to his day-to-day life. Again, this is where you and I should be taking notes.

Before Tommy can introduce Blake to the four teachers, Tommy must first make sure that Blake understands the what and the why of LWT before they get to the how. Tommy introduces Blake to “The 10 Human Regrets” and “The 10 Human Victories”. These are top 10 lists that reflect what a mediocre life and an exceptional life, respectively, means. Once they have set this ground work Blake begins his journey to meet the four teachers. During his journey Blake meets:

- Anna – a member of the housekeeping staff at a high-end luxury hotel. Anna teaches Blake about personal responsibility and the fact that you need no title to be a leader. Anna (as well as all the other teachers) gives Blake an acronym to help him remember what she has told him and help him apply it to his life. Her acronym is IMAGE.

◦Innovation
◦Mastery
◦Authenticity
◦Guts
◦Ethics


- Ty Boyd – a 5-time world slalom skiing champion. Ty talks with Blake about how turbulent times build great leaders and how many people resist the opportunity to show personal leadership because of the fear they have about exceeding their abilities. Ty’s acronym is SPARK.

◦Speak with Candor
◦Prioritize
◦Adversity Breeds Opportunity
◦Respond versus React
◦Kudo’s for Everyone


- Jackson Chan – ex-CEO of a multibillion dollar technology company turned gardener. Jackson’s message to Blake is that the deeper your relationships the stronger your leadership. Jackson’s acronym for Blake is HUMAN.

◦Helpfulness
◦Understanding
◦Mingle
◦Amuse
◦Nurture


- Jet Brisley – massage therapist to the rich and famous. Jet’s lesson for Blake is to be a great leader you must first become a great person. Jet’s acronym is SHINE.

◦See Clearly
◦Health is Wealth
◦Inspiration Matters
◦Neglect Not Your Family
◦Elevate Your Lifestyle


The book is full of great tips and ideas for growing your personal leadership. Many people are waiting until they get a leadership position complete with the power and the title. Their thought is that people will follow me when I have the title. The truth is that people follow people that show strong personal leadership in their own life. The message of “The Leader Who Had No Title” is for each and every one of us, regardless of position or title, to develop how we lead ourselves so that we positively influence as many people as possible in our day to day life.

Great book. I highly recommend it for everyone – new leader, old leader, aspiring leader.

Laughter Quotes

Seven days without laughter makes one weak. ~Mort Walker

Laughter is a tranquilizer with no side effects. ~Arnold Glasow

Laughter is an instant vacation. ~Milton Berle

A man isn't poor if he can still laugh. ~Raymond Hitchcock

What soap is to the body, laughter is to the soul.
~Yiddish Proverb

If you can laugh at it then you can live with it. ~Unknown

We don't laugh because we're happy -- we're happy because we laugh. ~William James

Laughter -- An interior convulsion, producing a distortion of the features and accompanied by inarticulate noises. It is infectious and, though intermittent, incurable. ~Ambrose Bierce

You are not angry with people when you laugh at them. Humor teaches tolerance. ~W. Somerset Maugham

A smile starts on the lips, A grin spreads to the eyes, A chuckle comes from the belly; But a good laugh bursts forth from the soul, Overflows, and bubbles all around. ~Carolyn Birmingham

Against the assault of laughter nothing can stand. ~Mark Twain

Laugh at yourself first, before anyone else can. ~Elsa Maxwell

Laughter gives us distance. It allows us to step back from an event, deal with it and then move on. ~Bob Newhart

You cannot be mad at somebody who makes you laugh - it's as simple as that. ~Jay Leno

If we couldn't laugh, we would all go insane. ~Jimmy Buffett

Laugh at yourself first before anyone else can. ~Elsa Maxwell

It is impossible for you to be angry and laugh at the same time. Anger and laughter are mutually exclusive and you have the power to choose either. ~Dr. Wayne Dyer

If you are not allowed to laugh in heaven, I don't want to go there.
~Martin Luther

We cannot really love anybody with whom we never laugh.
~Agnes Repplier

Life does not cease to be funny when people die any more than it ceases to be serious when people laugh. ~George Bernard Shaw

Goals and Goal Setting Quotations

Wednesday, June 1, 2011

The ability to convert ideas to things is the secret to outward success.
Henry Ward Beecher

The ability to concentrate and to use your time well is everything if you want to succeed in business--or almost anywhere else for that matter.
Lee Iacocca

A wise man will make more opportunities than he finds.
Francis Bacon

In everything the ends well defined are the secret of durable success.
Victor Cousins

Winning isn't everything, but wanting to win is.
Vince Lombardi

Failures do what is tension relieving,
while winners do what is goal achieving.

Dennis Waitley
(as quoted in Brian Tracy's book, Eat That Frog)

A man should have any number of little aims about which he should be conscious and for which he should have names, but he should have neither name for, nor consciousness concerning, the main aim of his life.
Samuel Butler

Goals are the fuel in the furnace of achievement.
Brian Tracy, Eat that Frog

The great and glorious masterpiece of
man is to know how to live to purpose.

Michel de Montaigne

Ah, but a man's reach should exceed his grasp,
or what's a heaven for?

Robert Browning

The significance of a man is not in what he attains but in what he longs to attain.
Kahlil Gibran

Every ceiling, when reached, becomes a floor, upon which one walks as a matter of course and prescriptive right.
Aldous Huxley

Some men give up their designs when they have almost reached the goal; while others, on the contrary, obtain a victory by exerting, at the last moment, more vigorous efforts than before.
Polybius

Life can be pulled by goals just as surely as it can be pushed by drives.
Viktor Frankl

The virtue lies in the struggle, not in the prize.
Richard Monckton Milnes

To reach a port, we must sail—Sail, not tie at anchor—Sail, not drift.
Franklin Roosevelt

There is no happiness except in the realization that we have accomplished something.
Henry Ford

Our plans miscarry because they have no aim. When a man does not know what harbor he is making for, no wind is the right wind.
Seneca

It is not enough to take steps which may some day lead to a goal; each step must be itself a goal and a step likewise.
Johann Wolfgang von Goethe

Who aims at excellence will be above mediocrity; who aims at mediocrity will be far short of it.
Burmese Saying

In absence of clearly defined goals, we become strangely loyal to performing daily acts of trivia.
Author Unknown

Don't bunt. Aim out of the ballpark.
David Ogilvy

There are two things to aim at in life; first to get what you want, and after that to enjoy it. Only the wisest of mankind has achieved the second.
Logan Pearsall Smith

Quotes to overcome Fear of Failure

Go back a little to leap further.
John Clarke

It is hard to fail, but it is worse never to have tried to succeed.
Theodore Roosevelt

Half of the failures in life come from pulling one's horse when he is leaping.
Thomas Hood

I failed my way to success.
Thomas Edison

Our doubts are traitors, and make us lose the good we oft might win, by fearing to attempt.
William Shakespeare

Every failure brings with it the seed of an equivalent success.
Napoleon Hill

Failure is blindness to the strategic element in events; success is readiness for instant action when the opportune moment arrives.
Newell D. Hillis

They fail, and they alone, who have not striven.
Thomas Bailey Aldrich

We learn wisdom from failure much more than success. We often discover what we will do, by finding out what we will not do.
Samuel Smiles

I was never afraid of failure, for I would sooner fail than not be among the best.
John Keats

It is foolish to fear what you cannot avoid.
Stultum est timere quod vitare non potes.
Publius Syrus

He that is down needs fear no fall.
John Bunyan

Never let the fear of striking out get in your way.
George Herman "Babe" Ruth

One who fears failure limits his activities.
Failure is only the opportunity to more
intelligently begin again.

Henry Ford

The greatest mistake you can make in life is to continually be afraid you will make one.
Elbert Hubbard

Little minds are tamed and subdued by misfortunes; but great minds rise above them.
Washington Irving

Our greatest glory consist not in never falling, but in rising every time we fall.
Oliver Goldsmith

Wherever we look upon this earth, the opportunities take shape within the problems.
Nelson A. Rockefeller

What would life be if we had no courage to attempt anything?
Vincent van Gogh

The greatest men sometimes overshoot themselves, but then their very mistakes are so many lessons of instruction.
Tom Browne

Experience teaches slowly, and at the cost of mistakes.
James A. Froude

It is the want of diligence, rather than the want of means, that causes most failures.
Alfred Mercier

A man's life is interesting primarily when he has failed--I well know.
For it's a sign that he tried to surpass himself.

Georges Clemenceau

He who fears being conquered is sure of defeat.
Napoleon Bonaparte

There is no failure except in no longer trying.
Elbert Hubbard

There is no impossibility to him who stands prepared to conquer every hazard.
The fearful are the failing.

Sarah J. Hale

Disappointments are to the soul what thunderstorms are to the air.
Johann C. F. von Schiller

Failure teaches success.
Japanese Saying