पूछो....

Thursday, June 9, 2011

कितनी सादगी है तुझमें ए हसीं,
ये तो गुलशन कि बहारों से पूछो,
कितनी खूबसूरती छिपी है तुझमे,
ये तुम इन नजारों से पूछो,

लोग समझ ना जाएँ कहीं प्यार अपना,
इसीलिए तुम ज़रा इशारों से पूछो,
किस हद तक किया हमने इंतज़ार तुम्हारा,
ये हमारी उम्मीदों के सहारों से पूछो,

झूठे बयानों ने किया है जुदा हमको,
ये बात अपने तरफदारों से पूछो,
कितना रोये हैं हम तुमसे बिछड़कर,
कभी ये हमारे अश्कों की धार से पूछो,

जला है पल-पल किस कदर दिल मेरा,
ये जुदाई की आग के अंगारों से पूछो,
रात-रात भर जागते हैं याद करके तुझे,
कभी आसमान के चाँद-सितारों से पूछो,

इस दिल से जलाया तुम्हारे घर की रोशनी को,
यह अपने घर के घनघोर अंधियारों से पूछो,
अपने सितमों का हिसाब बेरहम सनम,
हमको दी जो तुमने उन दुत्कारों से पूछो,

कैसे टकराता हूँ सर अपना लहू निकलने तक,
आकर यह हमारे घर की खड़ी दीवारों से पूछो,
बर्बादी की कहानी तुम मेरी,
जाकर मेरे अज़ीज़ यारों से पूछो....

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