कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 11

Wednesday, January 25, 2012

तुम मुझे मौका तो दो ऐतबार बनाने का;
थक जाओगे मेरी वफाओं के साथ चलते चलते!

आज असमान के तारों ने मुझे पूछ लिया;
क्या तुम्हें अब भी इंतज़ार है उसके लौट आने का!
मैंने मुस्कुराकर कहा;
तुम लौट आने की बात करते हो;
मुझे तो अब भी यकीन नहीं उसके जाने का

वक़्त बदलता है ज़िन्दगी के साथ;
ज़िन्दगी बदलती है वक़्त के साथ;
वक़्त नहीं बदलता अपनों के साथ;
बस अपने बदलते हैं वक़्त के साथ!

आस पास तेरा एहसास अब भी लिये बैठें हैं;
तू ही नज़र अंदाज़ करे तो हम शिकवा किससे करें!

माना आज उन्हें हमारा कोई ख़याल नहीं;
जवाब देने को हम राज़ी है, पर कोई सवाल नहीं!
पूछो उनके दिल से क्या हम उनके यार नहीं;
क्या हमसे मिलने को वो बेकरार नहीं!

हर पल ने कहा एक पल से,
पल भर के लिये आप मेरे सामने आ जाओ...
पल भर का साथ कुछ ऐसा हो...
कि हर पल तुम ही याद आओ!

फलक से चाँद उतारा गया;
मेरी आस का एक सहारा गया!
मैं दो बूँद पानी तरसती रही;
मेरे होंठों से ज़हर गुज़ारा गया!

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