कुछ शेर-ओ-शायरियाँ.....(०१-११-२०११)

Tuesday, November 1, 2011

इस जैसी हैं हथेलियाँ दो,
लगती हैं यह पहेलियाँ दो,
बूझोगे तो मिलेगी तुमको,
"हिंदी","उर्दू" सहेलियां दो...

ए खुदा इंक़लाब आने दो,
इस वतन पे शबाब आने दो,
सबको खुशियाँ जो बाँटता आये,
दौर वो लाजवाब आने दो....

मैं तो सपने सजाने आया हूँ,
मन को मन से मिलाने आया हूँ,
मेरी रानी समझ रही हों तुम,
राजभाषा सुनाने आया हूँ.,...

मुझे मेरी मंजिल मिली आपसे,
हवा मेरी चलने लगी आपसे,
करार आ गया बेक़रारी को भी,
कलेजे में ठंडक पड़ी आपसे....

नदी ने धुप से ये क्या कह दिया रवानी में,
उजाले पाँव पटक रहे हैं पानी में...

सर पटकती थी हवा बेचैन होकर,
पेड़ से क्या टूट कर पट्टी गिरी है...

हवा कल रात न जाने फोलों को क्या कह गयी,
की उनके सुर्ख चेहरे पर छलक आया पसीना है,
मैं उनको देख कर मौसम का रुख पहचान लेता हूँ,
चमकता आँखों में जो तेरी बनकर के नगीना है...

मेरी आँखों में देख आ कर हसरतों के नक्श;
ख़्वाबों में भी, तेरे मिलने की फ़रियाद करते!

कोई अच्छा लगे तो उनसे प्यार मत करना;
उनके लिए अपनी नींदे बेकार मत करना;
दो दिन तो आएँगे खुशी से मिलने;
तीसरे दिन कहेंगे इंतज़ार मत करना!

मंजिल तो मिल ही जाएगी, भटक के ही सही;
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं!

किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी,
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी!

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