महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---11

Monday, August 26, 2013

हर एक मंज़र पर उदासी छाई है,
चाँद की रौशनी में भी कुछ कमी आई है,
अकेले अच्छे थे हम अपने आशियाने में,
जाने क्यूँ लौट कर आज फिर तेरी याद आई है...
 
तन्हा थे इस दुनिया की भीड़ में,
सोचा कोई नहीं है तकदीर में,
एक दिन ऐसा हुआ की तुमने दोस्ती का हाथ बढ़ाया,
तो लगा की कुछ तो ख़ास था इस हाथ की लकीर में...
 
बड़ी कोशिश के बाद उसे भुला दिया,
उसकी यादों को सीने से मिटा दिया,
एक दिन उसका पैग़ाम आया,
जिसमें लिखा था की मुझे भूल जाओ,
और उस पैग़ाम ने मुझे भूला हुआ हर लम्हा फिर से याद दिला दिया...
 
राह मुश्किल है मगर दिल को आमादा तो करो,
साथ चलने का मेरे तुम इरादा तो करो,
दिल बहलता है मेरी जान तेरे वादों से,
वादा-वफ़ा करो पर इरादा तो करो...
 
बहुत चाह पर उनको भुला ना सके,
ख्यालों में किसी और को ला ना सके,
किसी को देख कर आँसू तो पोंछ लिए,
पर किसी को देखकर मुस्कुरा ना सके...
 
ज़िक्र तेरा ही आता है मेरे हर अफ़साने में,
तुझे जान से ज्यादा चाह हमने ज़माने में,
तन्हाइयों में तेरा ही सहारा मिला,
नाकाम रहे तुझे अक्सर हम भुलाने में...
 
किस कदर मुझको सताते हो तुम,
भूल जाने पर भी याद आते हो तुम,
जब भी खुदा से कुछ माँगा मैंने,
मेरे दिल की दुआ बन जाते हो तुम...
 
ये कैसा सिलसिला था मेरी मोहब्बत का जो मुझे मिला,
पास बुलाकर वो बोले की मुझसे दूर हो जाओ.....
 
दांतो से होंठों को यूं दबाया कीजिये,
हमारी निशानी को यूं मिटाया ने कीजिये...
 
तेरी साँसों की मह्क मेरी ग़ज़लों में उतरने लगी है जब से,
लोंग पूछने लगे हैं कि से गुलशन में रहने लगे हो कब से....
 
देख मत मूझे इस तरह के मैं अपने बस में रहूं,
आंखे मत फ़ेर लेना इस तरह के में कहीं का रहूं...

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