महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---14

Tuesday, August 27, 2013

तुम से मुमकिन हो तो फिर रोक दो सांसें मेरी,
दिल जो धड्केगा तो फिर याद तो तुम आओगे ही...
 
हबीबों से रकीब अच्छे जो जलकर नाम लेते हैं ,
गुलों से खार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं...
 
तुम आँखों की बरसात बचाए हुए रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले
ये बात अलग है हाथ कलम हो गए अपने,
हम आपकी तस्वीर बनाना नहीं भूले...
 
कितनी बदनाम है बाज़ार--मोहब्बत में वफ़ा,
लोग इस चीज़ के पास के चले जाते हैं...
 
मोहब्बत नहीं है क़ैद मिलने या बिछड़ने की,
ये इन खुदगर्ज़ लफ़्ज़ों से बहुत आगे की बात है...
 
अभी मसरूफ हूँ काफी कभी फुरसत में सोचूंगा ,
के तुझको याद करने में मैं क्या क्या भूल जाता हूँ...
 
वो मेरी ग़ज़ल सुन कर,पहलू बदल कर बोले,
कोई छीने कलम इस से,ये तो जान ले चला है..
 
हैं होंठ उसके किताब्बों में लिखी तहरीरों की तरह,
उंगलियाँ रखो तो आगे पढ़ने का दिल करता है...
 
जज्बातों के बादल अब गरजते नहीं बस बरस लिया करते हैं,
बिखरती ज़िन्दगी को नए हौंसले से हम कस लिया करते हैं,
अश्क बहें चुके हैं इतने कि अब पथरा सी गयी हैं आँखें मेरी,
तो जब अब टूट के रो नहीं पाते तो खुल के हस लिया करते हैं...
 
वो शख्स कि जो मेरा अपना भी नहीं है मगर,
हो जाये किसी और का मुझे अच्छा नहीं लगता...
 
बड़ी तब्दीलियाँ आईं हैं अपने आप में लेकिन,
तुझे याद करने की वो आदत नहीं गयी..
 
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है,
दिल ना चाह कर भी खामोश रह जाता है,
कोई सब कुछ कहकर प्यार जताता है,
कोई कुछ ना कहकर भी सब बोल जाता है...
 
छेड़ किस्सा--उल्फत, बड़ी लम्बी कहानी है,
मैं ज़माने से नहीं हारा, किसी की बात मानी है...

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