महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---24

Saturday, August 31, 2013

समझ नहीं आती मोहब्बत की कहानी क्या है ?
सजदा खुदा का करके लोग ,मांगते इंसान को है ..



मुद्दत से आरज़ू थी.... इस दिल को हमसफ़र की,
रहनुमा बन कर आ गए...... बड़ी बंदगी के साथ...


देखा नही तुमने शायद जमाने के मिजाज को।
ये वफा -वफा कहने वाले अकसर बेवफा होते हैं....


दिलों में इतनी ज्यादा नफरत लेकर कहाँ तक जाओगे,
सच का सामना नहीं किया तो जल्द ही मिट जाओगे...


रग रग से वाकिफ़ है नस नस पह्चानता है,
मुझे खुद से बेहतर वो शख्स जानता है....


उनकी बेरुखी पर भी फ़िदा होती है जान हमारी,
खुदा जाने वो प्यार करते तो क्या हाल होता...


बहुत याद करता है कोई हमें,
दिल से ये वहम क्यूँ नही जाता...


वक़्त एक सा नही रहता जा के बता दो उन्हें,
खुद भी रो पड़ते है दूसरों को रुलाने वाले...


तेरे हुस्न को देखकर ये उलझन थी,
कौन सा फूल चुनुं बंदगी के लिए....


बात बात पर सिर्फ उसी का ज़िक्र,
ऐ दिल सच सच बता तू चाहता क्या है...


सर झुकाता ही नहीं है वो किसी के सामने
जानता हूँ मैं उसे वो आदमी ख़ुददार है.....


आज बहुत इतरा रहा है ये मौसम,
जैसे तुमसे ढेर सारी बातें करके आया हो....


उनके लिए बारिश ख़ुशी की बात होगी,
मेरी छत के लिए तो ये एक इम्तेहान है.....
 
 
 
 
 

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