महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---20

Tuesday, August 27, 2013

मुमकिन है अब तुम से बात हो,
मुमकिन है अब तुमसे मुलाक़ात हो,
मेरी यादों को दिल में रखना दोस्त,
मुमकिन है कल हम पास हो हो...
 
उससे कहना मज़े में हैं हम,
बस ज़रा यादें सताती है,
उसकी दूरी का गम नहीं मुझे,
बस ज़रा आँखें भीग जाती है,
उसको बस इतना बता देना,
इतना आसान नहीं है तुम्हे भुला देना,
तेरी यादें भी तेरे जैसी ही हैं,
उन्हें आता है बस रुला देना....
 
हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है,
तुम्ही कहो की यह अंदाज़--गुफ्तगू क्या है,
रगों मैं दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख से ही टपका तो फिर लहू क्या है,
अपनी आखों के समुंदर में उतर जाने दे,
तेरा मुजरिम हूँ, मुझे डूब के मर जाने दे,
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको,
सोचता  हूँ कहूं तुझसे, मगर जाने दे....
 
तनहइयो में अक्सर वक़्त बर्बाद किया करते हैं,
हम भी हर पल आपको याद किया करते हैं,
हम नहीं जानते घरवाले बताते हैं,
हम तो नींदों में भी आपका नाम लिया करते है...
 
मुझे दर्द--इश्क का मज़ा मालूम है,
दर्द--दिल की इन्तहा मालूम है,
ज़िन्दगी भर मुस्कुराने की दुआ ना देना,
मुझे पल भर मुस्कुराने की सज़ा मालूम है...
 
मुझे ताकत दी जिन्दा रहने की,
मुझे हौसला दिया चलते जाने का,
मैं सोचता हूँ खुदा मुझ पर क्यों इतना मेहरबान है,
या शायद आगे इससे भी बड़ा रेगिस्तान है...
 
प्यार के गीत गुनगुनाने दो
अब महफ़िल--शमा बुझाने दो
ख्वाब आते नहीं मगर मुझको
नैन भर यूँ सपने दिखाने दो
बरस हुए, याद में तेरी शायद
आज रात बन के सुलाने दो
आग में जल इश्क किया हमने
मोहब्बत दिल से जलाने दो
जो किये वादे प्यार में तुम से
जान दे कर, मुझे निभाने दो...
 
तेरी आँखों से जो ये अश्क गिरते है
मेरे सीने में वो, गहरे से उतरते हैं
एक मदहोशी है, उनके प्यार में -दिल
मेरी बगिया में आके, वो यूँ महकते है
हम तो इश्क में डूबे है, मजनू की तरह
ये नादान लोग, हमें पागल समझते है
मैं कही उनको भूल ना जाऊ कभी
इसलिए वो, मेरे दिल में धड़कते है
ना जाने कौनसा रिश्ता है, तुझसे मेरा
यूँ ही नहीं, तेरे दर्द, मेरे सीने में पिगलते है....

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