महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---15

Tuesday, August 27, 2013

सारे मंज़र बदल गए होंगे,
आप हद्द से निकल गए होंगे,
आग इतनी कहाँ थी फूलों में,
हाथ शबनम से जल गए होंगे...
 
जीने को तो जी रहे हैं उन के बगैर भी लेकिन,
सजा--मौत के मायूस कैदियों की तरह...
 
कौन कहता है मुझे ठेस का एहसास नहीं,
जिंदगी एक उदासी है जो तुम पास नहीं,
मांग कर मैं पियूं तो यह मेरी खुद्दारी है,
इसका मतलब यह तो नहीं है कि मुझे प्यास नहीं...
 
मुसीबतों से उभरती है शख्सियत यारो,
जो पत्थरों से उलझे वो आइना क्या है...
 
हलक़ में अपनी ज़ुबान रखता हूँ,
मैं चुप हूँ कि तेरा मान रखता हूँ,
मेरी बुलंदियों से रश्क कर तू भी,
मैं ठोकर में आसमान रखता हूँ
 
कश्ती भी नहीं बदली, दरिया भी नहीं बदला,
हम डूबने वालों का जज्बा भी नहीं बदला,
है शौक--सफर ऐसा, इक उम्र हुई हम ने,
मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला
 
दुआ करो के सलामत रहे मेरी हिम्मत,
ये एक चिराग कईं आंधियों पे भारी है...
 
मंजिलें क्या है रास्ता क्या है,
हौसला हो तो फासला क्या है...
 
मिलना था इत्तफाक, बिछड़ना नसीब था,
वो फिर उतनी दूर हो गया, जितना करीब था...
 
हसीन मूरत को दिल में बसा लेता हूँ,
प्यार करता हूँ तुझे ये बता देता हूँ,
बस तू ही तो है जो समझती मेरी बातो को,
वर्ना दिल के जज्बातों को अक्सर में छुपा लेता हूँ...
 
कौन जीता है अब यहाँ कलंदर की तरह,
फूल भी देते हैं लोग पत्थर की तरह,
दोस्तों से अब कैसी वफ़ा की उमीदें,
इनकी बातें भी चुभती हैं खंजर की तरह,
अपने-अपने नसीब के कुछ किस्से हैं यारो,
कतरा भी इतराता है अब समंदर की तरह.
दुनिया पर अपनी हुकूमत चलने वाले सुन लो,
खाली हाथ जाओगे तुम भी एक दिन सिकंदर की तरह,
संसार की इस भेद-भाव में कुछ हासिल नहीं,
दिल साफ़ हो सबका गुरु के किसी लंगर की तरह,
ख्वाइश अफसोस ना कर अपनों को बदलता देखकर,
यहाँ लोग बदलते हैं बदलते हुए मुक़द्दर की तरह...

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