महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---7

Monday, August 26, 2013

चुप रहते हैं की कोई खफा ना हो जाए,
हमसे कोई यूँ ही रुसवा ना हो जाए,
बड़ी मुश्किल से अपना बनाया है उन्हें,
मिलने से पहले ही कहीं वो हमसे जुदा ना हो जाये...
 
जान के अनजान बनना अच्छा लगता है,
उसको अपने लिए परेशान करना अच्छा लगता है,
वो करते रहे प्यार का इकरार बार-बार,
मुझको नादान बनकर सुनना अच्छा लगता है..
 
गैरों पर मरने की उनकी फितरत सी हो गयी,
हमारी मोहब्बत उनकी शिकायत सी हो गयी,
सारी दुनिया को मानते हैं वो अपना,
बस एक मेरे ही नाम से उन्हें नफरत सी हो गयी...
 
मैं हर बला,हर तूफ़ान से गुज़र जाऊँगा,
हर दरिया के,हर समंदर के पार उतर जाऊँगा,
गर तू जो मेरे साथ अहि मेरे हमसफ़र,मेरे हमदम,
मैं तेरी खातिर अपने मुक़द्दर से भी लड़ जाऊँगा...
 
मेरे हमसफ़र तू मेरा अरमान है,
लेकिन मेरे दिल में तेरी एहमियत से अनजान है,
ज़िन्दगी में मेरा साथ ना कभी छोड़ जाना तुम,
बस ये जान लो की तुम्हारे बिन,मेरी दुनिया ही वीरान है...
 
तुमसे मिलकर तुम्हे भुलाना मुश्किल है,आसान नहीं...
दीवाने दिल को समझाना मुश्किल है,आसान नहीं,
हर रिश्ता,हर मंज़र अब तो फ़साना लगता है,
जबसे तुम आये हो,सारा शहर सुहाना लगता है,
जाते लम्हों का रुक जाना मुश्किल है आसान नहीं....
 
झोली फैला कर माँगा था उसको खुदा से,
पर खुदा ने मेरी फ़रियाद को सुना तक नहीं,
मैंने पूछी जब वजह उसकी,तो खुदा ने कहा,
उसे मत चाह जो तेरे लिए बना ही नहीं....
 
दिल की किताब में गुलाब उनका था,
रात को नींद में ख्वाब उनका था,
है कितना प्यार हमसे जब ये हमने पूछ लिया,
मर जायेंगे बिन तेरे ये जवाब उनका था...
 
भर आई मेरी आँखें,जब भी उसका नाम आया,
इश्क नाकाम सही,फिर भी बहुत काम आया,
हमने मोहब्बत में ऐसी भी गुजारी रातें,
बहे ना अश्क जब तक दिल को ना आराम आया...

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