मेरी बेचैँनी

Monday, August 16, 2010

मेरा मन बेचैँन है क्योँ,
बता दे मुझे।
ये मेरी ज़िन्दगी,अब तो
नीँद से जगा दे मुझे।

सब कुछ खो दिया मैनेँ,
इस इंतजार मेँ,जब मिलेगा
मौका कुछ कर दिखाऊंगा।
ये मेरी ज़िन्दगी अब वो,
मौका दिला दे मुझे।

दिल बेचैँन है क्योँ,
मेरा इतना।
क्योँ छिन गया चैँन मेरा,तुझसे नाराज तो
नहीँ था मैँ।

फिर क्योँ आँखोँ मे रह गया,
मेरा सपना।
सुना हैँ,दिल की तमन्ना भी
सच होती हैँ,फिर क्योँ
बेचैँन है मन इतना।

मैँ खामोश हूँ, अब तो सदा
दे मुझे,मैँ सुन रहा हूँ,अब
कुछ तो बता दे मुझे।
जी रहा हूँ मैँ क्योँ,
ये बेजान ज़िन्दगी।
जीने की अब तो कोई वजह
दे मुझे।

0 comments: