मेरी मासूमियत छीन ली

Monday, August 16, 2010

मेरा मन मेरा नहीँ रहा,
मेरा दिल मेरा नहीँ रहा,
चेहरे की वो हंसी छीन ली,
क्या बतलाऊँ मेरे दोस्त,
इस बेदर्द ज़माने ने मुझसे
वो मासूमियत छीन ली।

मैँ जैसा हुँ, मैँ वैसा था नहीँ,
पर मुझे सोचने का वक्त
मिलता नहीँ,
मेरे सपनोँ की वो दुनिया
छीन ली,
मेरे आँखोँ की वो नमी छीन
ली,
क्या समझाऊ मेरे दोस्त,
इस बेरेहम दुनिया ने,
मुझसे मेरी मासूमियत
छीन ली।

माँ का मतलब बदल गया,
दुनिया का हर शक्स बदल
गया,
मेरे दिल की वो सच्चाई
छीन ली,
हाथोँ की बनी लकीरेँ छीन
ली,
क्या बतलाऊ मेरे दोस्त,
इस बेर्दद ज़माने मुझसे वो
मासूमियत छीन ली।

मैँने जो कहाँ वो किसी ने
सुना नहीँ,
मेरी खामोशी को कोई
समझा नहीँ,
मेरी वो राते छीन ली,
जीने की हर वजह छीन
ली,
क्या समझाऊ मेरे दोस्त,
इस बेरेहम दुनिया ने,
मुझसे मेरी मासूमियत
छीन ली।

जो मिला मतलब से मिला,
और क्या करुँ तमसे गिला,
मेरा वो बचपना छीन
लिया,
मेरी वो तनहाई छीन ली,
क्या बतलाऊ मेरे दोस्त,
इस बेर्दद ज़माने ने मेरी वो
मासूमियत छीन ली।

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