माँ के बिना....

Monday, August 16, 2010

माँ के बिना दुनीया मेँ
सब कुछ अधुरा है।
माँ ही तो है जिससे हमारा
सब कुछ जुड़ा है।
माँ के बिना जीने कि
कोई सोचे भी कैसे।

माँ ही तो हैँ जिससे ये
जीवन बंधा है।
माँ की भाषा बोलकर
हमने बोलना सीखा,
माँ का हाथ पकड़कर
हमने चलना सीखा,
माँ ही तो हैँ जिसने
दुनिया की भीड़ से बचाया।
माँ ही तो हैँ जिसने
अपने आंचल मे छुपाया।

माँ के …… कैसे?
माँ तो हैँ जिसने जीवन
का मतलब समझाया।
अपने आंशु छिपाकर
हमे हँसना सिखाया।
हर किसी को ये
“भूवन”
समझा नहीँ सकता।
क्योँ माँ को माँ कहते हैँ
बतला नही सकता।
माँ के बिना…….

मर गये होते अगर
माँ नही होती।
उसकी दुवाओँ की
वो छाँव नही होती।
उसकी उम्मीदोँ की
वो राह नहीँ होती।
माँ का मतलब पुछोँ उनसे
जिनकी माँ नहीँ होती।
माँ के बिना…..

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