कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 9

Friday, December 30, 2011

वो खुद पर गरूर करते है, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं!
जिन्हें हम चाहते है, वो आम हो ही नहीं सकते!

यादो की शमा जब बुझती दिखाई देगी;
तेरी हर साँस मेरे वजूद की गवाई देगी;
तुम अपने अन्दर का शोर कम करो;
मेरी हर आहट तुम्हे सुनाई देगी!

आईना बन के बात करती धूप, दिल की दीवार पर बरसती धूप;
मेरे अन्दर भी धूप का आलम, मेरे बाहर भी रक्स करती धूप!

आँखें नीची है तो हया बन गई,
आँखें ऊँची है तो दुआ बन गई,
आँखें उठ कर झुकी तो अड़ा बन गई,
आँखें झुक कर उठी तो कदा बन गई!

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है;
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी है;
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने;
अभी तो सारा आसमान बाकी है!

प्रेम

व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,
वर्ष बीते अनेक किंतु प्रेम बलिदान ने इतिहास रचा है,
प्रीत रीत उस भले मानस की,आज भी प्रेरणास्त्रोत उंचा है,

कितने राजे आये,प्रेम पंरपरा न डिगा पाये,
कोयल सी इस कूक को, गीदड़बग्घी से न उरा पाये,
कष्ट, पीड़ा की न सीमा,पर न कोई इसे मिटा पाये,

प्रेम दिवस है नाम दिया, संत ने जीवनदान दिया,
पाठ पढ़ाया, प्रेम बिना न कोई जीवन,
प्रेमपथ रोड़ा उस मृत्यु को भी सम्मान दिया,

व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,
कभी रुप वेलेंटांइस, कभी जन मानस ब्यार,
बहती गंगा मानिंद ये प्रेम कभी न रुका है

तन्हा मुसाफिर था

एक तन्हा मुसाफिर था,
राहों पे यूं चलते हुये
अपनी ही धुन में ग़ाफिल था

आयी लहर थी कुछ सपनों की,
नए राहें रौशनी उसने भी
देखी थी वहां झलक अपनों की

अन्जान न था वो दुनिया के दस्तूर से,
वो टूटते जज्बो़ से देखे
इन्सानी चेहरे होते बेनूर से

फिर शामिल वो भी था उस जमात में,
बनते जहां कम ही फसाने
पर मिटते ज़रूर चन्द क़दमात में

था कभी मशगूल अपनी ही बातों में,
चाहें हो तन्हा वो लेकिन
त‍ल्लीन था अपनी ही सौगातों मे

आया फिर एक हवा का झौंका,
बनते हुये तमाम एहसास
अलफाज़ को ऐसा उसने रोका

और भी तन्हा दिन,अकेली रातें थीं,
तन्हा तो वो था पर अब
उसकी अपनीं तन्हाईयां भी न उसके हाथों थी

एक बार फिर तन्हा मुसाफिर था,
झूठे हुये सारे माइने
टूट चुका जिंदगी का उसकी नाफिर था

लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं

बिन मय बहकें मेरे क़दम,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

दिखे अनजाने सारे जाने चेहरे,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

जब तब थम जाये सोच मेरी,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

हर दूजे पल बहके धङकन मेरी,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

ख़ाली जैसे सारे जज्ब़ मेरे,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

निहारे एक-टक उस छोर आंखे मेरी,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

दौङे है सिहरन यूं जिस्म मेरे,
लेकिन मैं मदहोश नहीं हूं |

नहीं है मुझे होश मेरा ,
लेकिन फिर भी मैं मदहोश नहीं हूं |

कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 8

Monday, December 19, 2011

छोड़ ये बात कि मिले ये ज़ख़्म कहाँ से मुझ को;
`ज़िन्दगी बस तू इतना बता!` कितना सफर बाकि है!

बिना लिबास आये थे इस जहां में;
बस एक कफ़न की खातिर इतना सफ़र करना पड़ा!

वो मुझे भूल ही गया होगा;
इतनी मुदत कोई खफा नहीं रहता!

मंजिल तो मिल ही जाएगी, भटक के ही सही;
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं!

कोई अच्छा लगे तो उनसे प्यार मत करना;
उनके लिए अपनी नींदे बेकार मत करना;
दो दिन तो आएँगे खुशी से मिलने;
तीसरे दिन कहेंगे इंतज़ार मत करना!

मेरी आँखों में देख आ कर हसरतों के नक्श;
ख़्वाबों में भी, तेरे मिलने की फ़रियाद करते!

एक दिन हमारी मुस्कान हमसे पूछ बैठी,
हमें रोज़-रोज़ क्यों बुलाते हो?
हमने कहा हम याद अपने दोस्तों को करतें हैं,
तुम उनकी यादों के साथ चले आते हो!

किसी की यादों ने हमने तनहा कर दिया;
वरना हम अपने आप में किसी महफ़िल से काम न थे!

थोड़ी सी पी शराब थोड़ी उछाल दी,
कुछ इस तरह से हमने जवानी निकाल दी!

सारी उम्र अधुरा रहा मैं,
जब सांस रुकी लोग कहते पूरा हो गया!

निकल जाते हैं तब आंसू जब उनकी याद आती है!
जमाना मुस्कुराता है मुहब्बत रूठ जाती है!

जब तक तुम्हें न देखूं!
दिल को करार नहीं आता!
अगर किसी गैर के साथ देखूं!
तो फिर सहा नहीं जाता!

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है!
दिल न चाह कर भी, खामोश रह जाता है!
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है!
कोई कुछ न कहकर भी, सब बोल जाता है!

इश्क मुहब्बत तो सब करते हैं!
गम - ऐ - जुदाई से सब डरते हैं
हम तो न इश्क करते हैं न मुहब्बत!
हम तो बस आपकी एक मुस्कुराहट पाने के लिए तरसते हैं!

बड़ी कोशिश के बाद उन्हें भूला दिया!
उनकी यादों को दिल से मिटा दिया!
एक दिन फिर उनका पैगाम आया लिखा था मुझे भूल जाओ!
और मुझे भूला हुआ हर लम्हा याद दिला दिया!

आ गया है फर्क उसकी नज़र में यकीनन;
अब वो मुझे `अंदाज़` से नहीं, `अंदाज़े` से पहचानते हैं!

वो दिल में है, धडकन में है, रूह में है;
सिर्फ किस्मत में नहीं तो खुदा से गिला कैसा!

एक कविता.....

Tuesday, December 13, 2011

कभी अपनी हँसी पर भी आता है गुस्सा,
कभी सारे जहां को हँसाने को जी चाहता है,
कभी छुपा लेते हैं ग़मों को दिल के किसी कोने में,
कभी किसी को सब कुछ सुनाने को जी चाहता है,
कभी रोता नहीं दिल टूट जाने पर भी,
और कभी बस यूँ ही आँसू बहाने को जी चाहता है,
कभी हँसी सी आ जाती है बीती यादों पर,
तो कभी सब कुछ भुलाने को जी चाहता है,
कभी अच्छा सा लगता है आज़ाद उड़ना कहीं,
और कभी किसी की बाँहों में सिमट जाने को जी चाहता है,
कभी सोचते हैं की कुछ नया सा हो ज़िन्दगी में,
और कभी बस ऐसे ही जिए जाने को जी चाहता है........

महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी..(०७-१२-२०११)

Wednesday, December 7, 2011

ज़िन्दगी में लोग दुःख के सिवा दे भी क्या सकते हैं,
मरने के बाद दो गज़ कफ़न देते हैं,वो भी रो रो के......

खुदा करे तेरी ज़िन्दगी जन्नत रहे,
मेरी दोस्ती तेरे दिल में अमानत रहे,
अगर कुछ है तो ये दुआ है,
की तू जहां भी रहे सलामत रहे....

बुझ गयी है आस,छिप गया है तारा,
चाँद तन्हा है और आसमान तन्हा,
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं मेरे साथिया,
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा....

एक दिन तुझसे रूठकर के देखना है,
तेरे मनाने का अंदाज़ देखना है,
अभी तो दो पल ही साथ चले हैं,
कब तक साथ चलोगे यह एहसास देखना है....

लम्हों की एक किताब है ज़िन्दगी,
साँसों और ख्यालों का हिसाब है ज़िन्दगी,
कुछ ज़रूरतें पूरी,कुछ ख्वाहिशें अधूरी,
बस इन्ही सवालों का जवाब है ज़िन्दगी...

उस हसीना की तारीफ में क्या कहूं,
कोई शहज़ादी ज़मीन पर उतर आई है,
आँखें हैं उसकी या मैकशी के प्याले,
देख कर ही हम पे खुमारी सी छाई है....

ख्वाबों में अक्सर मुलाकात करते हैं,
लब खामोश रहकर भी बात करते हैं,
फ़रियाद इतनी है की भूलें न वो हमें,
जिन्हें हम हमेशा याद करते हैं.....

दिल के छालों को कोई शायरी कहे तो परवाह नहीं;
तकलीफ तो तब होती है जब कोई वाह-वाह करता है!

मुझे मालूम है मैं उसके बिना जी नहीं सकती;
उसका भी यही हाल है मगर किसी और के लिये!

मोहित कुमार जैन (०७-१२-२०११)