प्रेम

Friday, December 30, 2011

व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,
वर्ष बीते अनेक किंतु प्रेम बलिदान ने इतिहास रचा है,
प्रीत रीत उस भले मानस की,आज भी प्रेरणास्त्रोत उंचा है,

कितने राजे आये,प्रेम पंरपरा न डिगा पाये,
कोयल सी इस कूक को, गीदड़बग्घी से न उरा पाये,
कष्ट, पीड़ा की न सीमा,पर न कोई इसे मिटा पाये,

प्रेम दिवस है नाम दिया, संत ने जीवनदान दिया,
पाठ पढ़ाया, प्रेम बिना न कोई जीवन,
प्रेमपथ रोड़ा उस मृत्यु को भी सम्मान दिया,

व्यथा है, एक कथा है, प्रेम की सदैव यही प्र‍था है,
कभी रुप वेलेंटांइस, कभी जन मानस ब्यार,
बहती गंगा मानिंद ये प्रेम कभी न रुका है

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