महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी..(०७-१२-२०११)

Wednesday, December 7, 2011

ज़िन्दगी में लोग दुःख के सिवा दे भी क्या सकते हैं,
मरने के बाद दो गज़ कफ़न देते हैं,वो भी रो रो के......

खुदा करे तेरी ज़िन्दगी जन्नत रहे,
मेरी दोस्ती तेरे दिल में अमानत रहे,
अगर कुछ है तो ये दुआ है,
की तू जहां भी रहे सलामत रहे....

बुझ गयी है आस,छिप गया है तारा,
चाँद तन्हा है और आसमान तन्हा,
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं मेरे साथिया,
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा....

एक दिन तुझसे रूठकर के देखना है,
तेरे मनाने का अंदाज़ देखना है,
अभी तो दो पल ही साथ चले हैं,
कब तक साथ चलोगे यह एहसास देखना है....

लम्हों की एक किताब है ज़िन्दगी,
साँसों और ख्यालों का हिसाब है ज़िन्दगी,
कुछ ज़रूरतें पूरी,कुछ ख्वाहिशें अधूरी,
बस इन्ही सवालों का जवाब है ज़िन्दगी...

उस हसीना की तारीफ में क्या कहूं,
कोई शहज़ादी ज़मीन पर उतर आई है,
आँखें हैं उसकी या मैकशी के प्याले,
देख कर ही हम पे खुमारी सी छाई है....

ख्वाबों में अक्सर मुलाकात करते हैं,
लब खामोश रहकर भी बात करते हैं,
फ़रियाद इतनी है की भूलें न वो हमें,
जिन्हें हम हमेशा याद करते हैं.....

दिल के छालों को कोई शायरी कहे तो परवाह नहीं;
तकलीफ तो तब होती है जब कोई वाह-वाह करता है!

मुझे मालूम है मैं उसके बिना जी नहीं सकती;
उसका भी यही हाल है मगर किसी और के लिये!

मोहित कुमार जैन (०७-१२-२०११)

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