कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 8

Monday, December 19, 2011

छोड़ ये बात कि मिले ये ज़ख़्म कहाँ से मुझ को;
`ज़िन्दगी बस तू इतना बता!` कितना सफर बाकि है!

बिना लिबास आये थे इस जहां में;
बस एक कफ़न की खातिर इतना सफ़र करना पड़ा!

वो मुझे भूल ही गया होगा;
इतनी मुदत कोई खफा नहीं रहता!

मंजिल तो मिल ही जाएगी, भटक के ही सही;
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं!

कोई अच्छा लगे तो उनसे प्यार मत करना;
उनके लिए अपनी नींदे बेकार मत करना;
दो दिन तो आएँगे खुशी से मिलने;
तीसरे दिन कहेंगे इंतज़ार मत करना!

मेरी आँखों में देख आ कर हसरतों के नक्श;
ख़्वाबों में भी, तेरे मिलने की फ़रियाद करते!

एक दिन हमारी मुस्कान हमसे पूछ बैठी,
हमें रोज़-रोज़ क्यों बुलाते हो?
हमने कहा हम याद अपने दोस्तों को करतें हैं,
तुम उनकी यादों के साथ चले आते हो!

किसी की यादों ने हमने तनहा कर दिया;
वरना हम अपने आप में किसी महफ़िल से काम न थे!

थोड़ी सी पी शराब थोड़ी उछाल दी,
कुछ इस तरह से हमने जवानी निकाल दी!

सारी उम्र अधुरा रहा मैं,
जब सांस रुकी लोग कहते पूरा हो गया!

निकल जाते हैं तब आंसू जब उनकी याद आती है!
जमाना मुस्कुराता है मुहब्बत रूठ जाती है!

जब तक तुम्हें न देखूं!
दिल को करार नहीं आता!
अगर किसी गैर के साथ देखूं!
तो फिर सहा नहीं जाता!

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है!
दिल न चाह कर भी, खामोश रह जाता है!
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है!
कोई कुछ न कहकर भी, सब बोल जाता है!

इश्क मुहब्बत तो सब करते हैं!
गम - ऐ - जुदाई से सब डरते हैं
हम तो न इश्क करते हैं न मुहब्बत!
हम तो बस आपकी एक मुस्कुराहट पाने के लिए तरसते हैं!

बड़ी कोशिश के बाद उन्हें भूला दिया!
उनकी यादों को दिल से मिटा दिया!
एक दिन फिर उनका पैगाम आया लिखा था मुझे भूल जाओ!
और मुझे भूला हुआ हर लम्हा याद दिला दिया!

आ गया है फर्क उसकी नज़र में यकीनन;
अब वो मुझे `अंदाज़` से नहीं, `अंदाज़े` से पहचानते हैं!

वो दिल में है, धडकन में है, रूह में है;
सिर्फ किस्मत में नहीं तो खुदा से गिला कैसा!

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