कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 9

Friday, December 30, 2011

वो खुद पर गरूर करते है, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं!
जिन्हें हम चाहते है, वो आम हो ही नहीं सकते!

यादो की शमा जब बुझती दिखाई देगी;
तेरी हर साँस मेरे वजूद की गवाई देगी;
तुम अपने अन्दर का शोर कम करो;
मेरी हर आहट तुम्हे सुनाई देगी!

आईना बन के बात करती धूप, दिल की दीवार पर बरसती धूप;
मेरे अन्दर भी धूप का आलम, मेरे बाहर भी रक्स करती धूप!

आँखें नीची है तो हया बन गई,
आँखें ऊँची है तो दुआ बन गई,
आँखें उठ कर झुकी तो अड़ा बन गई,
आँखें झुक कर उठी तो कदा बन गई!

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है;
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी है;
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने;
अभी तो सारा आसमान बाकी है!

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