महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---32

Sunday, October 6, 2013

यादों के इस भंवर में एक पल मेरा भी हो,
फूलों के इस चमन में एक गुल मेरा भी हो,
खुदा करे की जब आप याद करें अपनों को,
तो उनमे एक नाम मेरा भी हो...
 
मिली ज़िन्दगी ही ऐसी की ज़िन्दगी भी रो पड़ी,
तेरी तलाश में ज़ालिम सज़ा भी रो पड़ी,
तुझे टूट कर चाहा और इतना चाहा,
कि तेरी वफ़ा कि खातिर,वफ़ा भी रो पड़ी,
मेरा नसीब,मेरा मुक़द्दर बने तू,
ये माँगते-माँगते दुआ भी रो पड़ी...
 
माँ कहती है मत करो चोरी,
भगवान् सज़ा देता है,
क्या आपको भी सज़ा मिलेगी हमारा दिल चोरी करने कि...
 
आप तो चाँद जैसे हो,
जिसे सब याद किया करते हैं,
हमारी किस्मत तो सितारों जैसी है,
लोग अपनी ख्वाहिश के लिए भी हमारे टूट जाने का इंतज़ार करते हैं...
 
आपके दीदार को निकल आये हैं तारे,
आपकी खुशबू से छा गयी हैं बहारें,
आपके साथ दिखते हैं कुछ ऐसे नज़ारे,
कि छुप-छुप कर चाँद भी बस आपको निहारे...
 
मेरी दीवानगी कि कोई हद नहीं,
तेरी सूरत के सिवा कुछ याद नहीं,
मैं हूँ फूल तेरे गुलशन का,
तेरे सिवा मुझ पे किसी का हक नहीं...
 
आपकी हँसी बहुत प्यारी लगती है,
आपकी हर ख़ुशी हमें हमारी लगती है,
कहीं दूर ना करना खुद से हमें,
आपकी दोस्ती हमें जान से भी प्यारी लगती है...
 
जब से देखा है तेरी आँखों में झाँक कर,
कोई भी आइना हमें अच्छा नहीं लगता,
तेरी मोहब्बत में ऐसे हुए हैं दीवाने,
तुम्हे कोई और देखे तो अच्छा नहीं लगता...
 
याद रखने के लिए कोई चीज़ चाहिए,
आप नहीं तो आपकी तस्वीर चाहिए,
पर आपकी तस्वीर हमारा दिल बहला ना सकेगी,
क्यूंकि वो आपकी तरह मुस्कुरा ना सकेगी...

0 comments: