महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---34

Sunday, October 6, 2013

रिश्तों का विश्वास टूट ना जाए,
दोस्ती का साथ छूट ना जाए,
ऐ खुद गलती करने से पहले मुझे रोक लेना,
कहीं मेरी गलती से मेरा दोस्त मुझसे रूठ ना जाए...

हमारी  आवाज़ उन्हें सुनाई नहीं देती,
अब तो दूर तक कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती,
परवाह है उन्हें सब लोगों की,
बस हमारी ही तन्हाई उन्हें दिखाई नहीं देती...

ठोकर खाते हैं और मुस्कुराते हैं,
इस दिल को सब्र करना सिखाते हैं,
हम तो दर्द लेकर भी याद करते हैं,
और लोग दर्द देकर भी भूल जाते हैं..

ना मुस्कुराने को जी चाहता है,
ना आँसू बहाने को जी चाहता है,
लिखूं तो क्या लिखूं तेरी याद में,
बस तेरे पास लौट आने को जी चाहता है...

तुम गए तो हर ख़ुशी चली गयी,
तुम्हारे बिना चिरागों से रौशनी चली गयी,
क्या कहूं क्या गुज़री है इस दिल पर,
हम जिंदा रह गए बस,पर हमारी ज़िन्दगी चली गयी...

तेरे हाथ की काश मैं वो लकीर बन जाऊं,
काश मैं तेरा मुक़द्दर,तेरी तकदीर बन जाऊं,
मैं तुझे इतना चाहूँ कि तू भूल जाए हर रिश्ता,
मैं तेरे हर रिश्ते कि तस्वीर बन जाऊं,
तू आँखें बंद करे तो आऊं मैं ही नज़र,
इस तरह मैं तेरे ख्वाब कि ताबीर बन जाऊं...

0 comments: