कुछ अनकही शायरियाँ.........भाग 1

Tuesday, March 2, 2010



१.उनके लिए पैग़ाम लिखते हैं,
साथ गुजरी बातें तमाम लिखते हैं,
दीवानी हो जाती है वो कलम भी,
जिस कलम से हम उनका नाम लिखते हैं॥

२.अंजाम-ए-मोहब्बत यही होता है ज़माने में,
जल जाते हैं परवाने शमा के जलने से पहले॥

३.चाँद से पूछो या मेरे दिल से,
तन्हा कैसे रात बिताई जाती है,
कागज़ की नाव दरिया में बहाकर,
तूफानों से शर्त लगाईं जाती है॥

४.ज़मीन उसकी है,
यह आसमान उसका है,
किरायेदार हैं हम तो बस,
मकान उसका है॥

५.वो दोस्त था मेरा,पर दुश्मनी निभा गया,
जाते-जाते अपनी हकीकत बता गया,
बेकसूरी भी एक जुर्म था मेरा,
गुनाह करके खुद,मुझे मुजरिम बता गया॥

६.कहीं अँधेरा तो कहीं शाम होगी,
हमारी हर ख़ुशी आपके नाम होगी,
कुछ माँग कर तो देखिये हमसे,
होठों पे हसी और हथेली पे जान होगी॥

७.ना याद करना है उसको,ना भूल जाना है,
तमाम उम्र हमें दिल को आजमाना है,
चिराग शब में जहाँ आँसुओं से जलते हैं,
उसी गली में हमारा गरीबखाना है॥


To be continued.....

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