महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---29

Wednesday, September 11, 2013

दोस्तों की हर पल याद सताती है,
वो गुज़रा पल,वो मस्ती बहुत याद आती है,
हम तो फिर से जीना चाहते हैं उन पलों को,
पर वो हसीं ज़िन्दगी फिर कहाँ लौट के आती है...
 
साँस लेने से भी तेरी याद आती है,
हर साँस में तेरी खुशबू बस जाती है,
कैसे कहूँ कि साँस से मैं जिंदा हूँ,
जबकि हर साँस से पहले तेरी याद आती है...
 
हर आँसू का मतलब ग़म नहीं होता,
दूरियों से रिश्ता खत्म नहीं होता,
हर वक़्त याद आती है आपकी,
क्यूंकि दोस्तों कि यादों का कोई मौसम नहीं होता...
 
कैसे कहूँ कि अपना बना लो मुझे,
बाहों में अपनी समा लो मुझे,
बिन तुम्हारे एक पल भी अब कटता नहीं,
तुम आकर मुझसे चुरा लो मुझे...
 
उसे जब याद आएगा वो पहली बार का मिलना,
तो पल-पल याद रखेगा या सब कुछ भूल जाएगा,
उसे जब याद आएगा गुज़रे मौसम का हर लम्हा,
तो खुद ही रो पड़ेगा या खुद ही मुस्कुराएगा..
 
हर बार दिलस से ये पैग़ाम आये,
जुबां खोलूं तो तेरा ही नाम आये,
तुम ही क्यूँ भाये दिल को ये नहीं मालूम,
जब दिल के सामने हसीं तमाम आये...
 
नशा ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिए,
पर सिर्फ शराब ही नहीं है बेखुदी के लिए,
किसी कि मस्त निगाहों में डूब जा दोस्त,
बड़ा हसीं समंदर है ये खुदखुशी के लिए...

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