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मैं कल भी तन्हा था,
मैं आज भी तन्हा हूँ,
बारिश की उन बूंदों की तरह,
जो तन्हा हैं बादलों का साथ होते हुए भी,
आवारा उन भँवरों की तरह,
जो तन्हा हैं फूलों के पास होते हुए भी,
मैं कल भी तन्हा था,
मैं आज भी तन्हा हूँ,
पतझड़ में गिरते उन पत्तों की तरह,
जो पेड़ों की शाख अपर हैं,
शब्दों के उस भंडार की तरह,
जो बसे हर बात में हैं,
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सोचता हूँ जब इस बारे में,
की इश्वर ने मेरे ही नसीब में तन्हाई क्यूँ लिखी,
देखता हूँ तब आस-पास मेरे तन्हा हज़ारों हैं,
जब महसूस होता है दिल को,
की हर कोई किसी ना किसी तन्हाई में जीता है,
तब मैं और मेरी तन्हाई आपस में बातें करते हैं,
की मैं कल भी तन्हा था,
और मैं आज भी तन्हा हूँ॥
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