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क्या लिखूं,क्या न लिखूं,
कलम हाथ में है पर शब्द नहीं है,
तुमसे मिलकर कुछ यूँ लगा,
मानो जीवन में अब कोई दर्द नहीं है,
तुम ही प्रियतमा,तुम ही सखी बनकर,
तुम ही मेरी कविताओं के शब्द बनकर,
कुछ यूँ घुल गयी हो मेरे जीवन में,
की अब बस मिठास ही मिठास है,कोई कडवापन नहीं,
दिल की आरज़ू,दिल की हसरत बनकर,
और मेरे जीवन की प्रेरणा बनकर,
तुम ही हो दिल की बगिया का वो फूल,
जिसके बिना मेरे दिल का चमन नहीं है,
जिसके बिना मेरा जीवन संपूर्ण नहीं है॥
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