कल...आज...कल...

Sunday, February 7, 2010

आज जब मैं आखरी बार,
अपनी यादों के दामन को संजो रहा हूँ,
तब न जाने तुम्हारी वो यादें जो,
दफ़न हो गयी थी किसी कोने में दिल के,
उमड़ आई आँखों के रास्ते से॥

वो यादें जो कभी मेरी ज़िन्दगी की,
अनमोल धरोहर थीं,वो यादें जो कभी,
मेरे जीने की वजह थीं,
आज वो ही यादें भूल जाना चाहता हूँ मैं,
पर फिर से पुरानी बातें याद दिला जाती हैं वो यादें॥

पल भर के लिए ही सही,
गर तुमने समझा होता मुझे,
तो ज़िन्दगी को और हसीं बना जाती वो बातें,
जो अब बन गयी हैं सिर्फ एक सोच और हसीं यादें॥

उन्ही यादों की एक खूबसूरत तस्वीर बना कर,
दिल में,जिए जा रहा हूँ,
और तेरी बेवफाई का ग़म पिए जा रहा हूँ,
सोचकर यह की शायद कभी तो तुझे भी,
अपनी गलती का एहसास होगा,
और उसी दिन मैं शायद इन यादों का,
सही इस्तेमाल कर,तुम्हे और भी दुःख दूंगा,
उन दुखों के बदले,
जो तुमने मुझे दिए हैं,
हाँ...शायद मैं ऐसा ही करूँगा...?


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