फ़र्ज़ उल्फत से सब अदा कर चले,
जैसे भी मुमकिन था हम निभा कर चले,
प्यार के नाम गुज़ार दी ज़िन्दगी तमाम,
और तेरी राहों में,सजदे अदा कर चले,
निभाना चाहते तो निभा दिया होता,
तुमने घर आँगन मेरा सजा दिया होता,
लेकिन तुम्हें तो चाहिए थी सेज सुखों की,
काश मेरे दुःख-दर्द में हाथ बँटा दिया होता,
फूलों की चाह में तबाह हो गए,
एक तेरे लिए क्या से क्या हो गए,
जो ख्वाब तूने दिखाए थे मुझे,
आज वो ही ज़िन्दगी के लिए गुनाह हो गए॥
जैसे भी मुमकिन था हम निभा कर चले,
प्यार के नाम गुज़ार दी ज़िन्दगी तमाम,
और तेरी राहों में,सजदे अदा कर चले,
निभाना चाहते तो निभा दिया होता,
तुमने घर आँगन मेरा सजा दिया होता,
लेकिन तुम्हें तो चाहिए थी सेज सुखों की,
काश मेरे दुःख-दर्द में हाथ बँटा दिया होता,
फूलों की चाह में तबाह हो गए,
एक तेरे लिए क्या से क्या हो गए,
जो ख्वाब तूने दिखाए थे मुझे,
आज वो ही ज़िन्दगी के लिए गुनाह हो गए॥
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