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वो पल तन्हाई के,वो मीठी-मीठी यादें,
कुछ नमी सजी अश्कों की,वो सदियों लम्बी रातें,
साँसों सी उलझी सर्द हवा जाने क्या बात सुनाये,
टूटे पत्तों पर चलते कदम,तेरे आने की चाह जगाएं,
मद्धम सा लगता सूरज जब मौसम भीना हो जाए,
हल्का सा उलझा धुंआ,ख्वाब सा क्यूँ बन जाए,
मिलकर भूले न कुछ,थी ऐसी नटखट वो शैतान,
अब तो चेहरे पर पढता है हर कोई उसका नाम,
हर शख्स में तेरा अक्स दिखता तू इस से अनजान,
दिल की धड़कन में छिप जा जैसे पत्थर में भगवान,
किस की नज़रों में देखूं खुद की भूली बिसरी यादें,
तुम बिन कैसे जीते हैं,गर मर जाते तो समझाते,
वो पल तन्हाई के,वो मीठी-मीठी यादें,
कुछ नमी सजी अश्कों की,वो सदियों लम्बी रातें॥
मोहित कुमार जैन
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