मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में चक्रों की संख्या सर्वमान्य रूप से छ: ही है। इन चक्रों के विषय में
अत्यंत महत्वपूर्ण एवं गोपनीय जानकारी यहां दी गई है। यह जानकारी शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक है-
(1) मूलाधार चक्र- गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही
एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।
(2) स्वाधिष्ठान चक्र- इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत
होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।
(3)मणिपूर चक्र- नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली,
लज्जा, भय,घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं ।
(4) अनाहत चक्र- हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा,
कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह
सब दुर्गुण हट जायेंगे ।
(5) विशुद्धख्य चक्र- कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है।
यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है
(6) आज्ञाचक्र- भू्मध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का
निवास है । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं ।
Quotes(14-08-2014)
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“When you blame others, you give up your power to change.” — Dr. Robert
Anthony “It isn’t where you came from; it’s where you’re going that
counts.” — Ella...
10 years ago
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