बैठे
हुए हैं
सामने एक
दूसरे के
हम,
वो
दिल लिए
हुए हैं
हम तमन्ना
लिए हुए...
हर
तरफ राह
मैं थे
कांटे बिछे
हुए,
मुझ
को तेरी
तलब थी,
गुज़रते चले
गए...
दिल
को उसकी
हसरत से
खफा कैसे
करूँ,
अपने
रब को
भूल जाने
कि खता
कैसे करूँ,
लहू
बनकर रग
रग में
बस गए
हैं वो,
लहू
को इस
जिस्म से
जुदा कैसे
करूँ...
मेरे
नसीब का
खेल निराला
हो गया,
घर
मेरा जला
और कहीं
उजाला हो
गया...
वो
महफिलें कहाँ
गयी वो
बज्में कहाँ
गई,
ता-उम्र
साथ
देने की
रस्में कहाँ
गई,
दो
कदम साथ
चल कर,
कर लिया
किनारा,
इक
साथ जीने
मरने की
कसमें कहाँ
गई,
आता
है याद
मुझ को
उस का
लगातार देखना,
जो
झपकी कभी
न थी
वो पलकें
कहाँ गई,
सूखे
पत्तों की
तरह बिखर
जाती हैं
उल्फतें,
जो
पकती थी
प्यार में
वो फसलें
कहाँ गई,
बुझ
जाते हैं
एक झोंके
से झूठी
चाहत के
चिराग,
जो
जलती थी
आँधियों में,
वो शमां
कहाँ गई...
समंदर
के तूफ़ान
से तो
निकल गया,
पर
तेरी आँखों
का दरिया
पार न
कर सका...
उनकी
आँखों को
देखा तो
हम शराब
पीना भूल
गए,
उनके
होठों को
छुआ तो
हम जाम
छूना भूल
गए,
अब
हम क्या
बताएं दोस्तों,
उनको
बाहों में
लिया तो
पूरी दुनिया
को भूल
गए....
ढूँढता
था कि
कौन मेरा
साथ निभाएगा
साये की
तरह,
सोचता
हूँ की
कौन मेरे
जज्बातों को
समझेगा यहाँ,
पर
जब ख्याल
आया उनका
जिन्होंने हमें
कभी अकेला
नहीं छोड़ा,
तो
लगा इन
तनहाइयों से
अच्छा साथी
मुझे मिलेगा
कहाँ....
कहीं
खो न
जाए ज़िन्दगी,
मुझ
को तू
इस को
जी लेने
दे,
तेरी
अदा, तेरी
सदा, जैसे
है एक
जाम,
यह
मुहब्बत मुझे
पी लेने
दे...
ये
दुनिया वाले
बड़े अजीब
हैं,
कभी
दूर तो
कभी करीब
हैं,
दर्द
न बताओ
तो हमें
कायर कहते
हैं,
और
दर्द बताओ
तो हमें
शायर कहते
हैं...
थमे
हुए पानी
मे भी
अब जाने
से डर
लगता है
खुले
आसमान मे
भी जाने
से डर
लगता है
कभी
सुनाते थे
यारो को
हम भी
किस्से मोहब्बत
के
अब
तो इश्क़
के ढाई
अक्शर गुनगुनाने
से डर
लगता है...
0 comments:
Post a Comment