फिर
वो ही
कहानी दोहराई
गयी फिर
मुझे कोई
तनहा छोड़
गया;
ले
गया सब
कुछ जाने
वाला बस
एक यादों
की दुनिया
छोड़ गया;
वह
लम्हें जिन
की शाख़
पर हमारी
मुलाकातों के
फूल सजे
थे
उन
शाख़ों से
उन्हें नोच
कर उनपर
जुदाई का
बसेरा छोड़
गया ;
मैं
मुद्दतों प्यास
की शिद्दत
को सहता
रहा सेहरा
में भी
मगर,
दम
निकला जब
मुझे समंदर
तक लाकर
वह प्यासा
छोड़ गया;
जाने
वाला ले
गया आँखों
से नीदें
दिल से
क़रार भी
लेकिन,
आखों
में ख़्वाब
के टुकड़े
दिल में
अपनी एक
तमन्ना छोड़
गया;
कभी
जानम कभी
जानाँ कभी
जान-ऐ-जहाँ
कहता
जो मुझे,
वह
सारे नाम
सब अलक़ाब
मिटाकर बेनाम
रिश्ता छोड़
गया;
कुछ
इस तरह
बँटवारा-ऐ-सल्तनत-ऐ-इश्क़
किया
उसने,
मेरे
लब के
लिए खुश्क
सेहरा और
आँखों के
लिए दरिया
छोड़ गया;
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