नासूर
मेरी
पीठ
पर
दस्तखत
हैं
दोस्तों
के,
सलामत
है
सीना
अभी
दुश्मनों
के
इंतजार
में…
उसकी
निगाहों में
इतना असर
था
खरीद ली उसने एक नज़र में ज़िन्दगी मेरी…
खरीद ली उसने एक नज़र में ज़िन्दगी मेरी…
तेरी
यादो के
ये जखम
मिले हमे !
के अभी स़भले ही थे की फिर गिर पडे
के अभी स़भले ही थे की फिर गिर पडे
राज़
खोल देते
हैं नाज़ुक
से इशारे
अक्सर,
कितनी खामोश मोहब्बत की जुबां होती है ….
कितनी खामोश मोहब्बत की जुबां होती है ….
मुझे
लगा है
यूँ इश्क़
का रोग
मेरी दवा
कीजिये
ले
लेगा इश्क़
जान मेरी
जीने की
दुआ कीजिये
दिन-पे-दिन
बढती
ही जाती
है तडप
ये बैचैनी
मिला
दो महबूब
से या
मरने की
सज़ा दीजिये ……
हज़ार
रुन्ज़ सर
आँखों पर
बात ही
क्या है
तेरी खुशी
के ताल्लुक
मेरी खुशी
ही क्या
है…
रब्बा
बचाए तेरी
मस्त-मस्त
निगाहों से
फरिश्ता ही
बहक जाए
आदमी की
तो औकात ही
क्या है..
कुर्बान
हो जाऊँ
उस शक्स
की हाथों
की लकीरों
पर,
जिसने
तुझे माँगा
भी नहीं
और तुझे
अपना बना
लिया...
सोचते
हैं जान
उसे अपनी
मुफ्त में
दे दें,
इतने
मासूम खरीददार
से क्या
लेन-देन...
देखकर
तुम्हारी निग़ाहों
को,आरज़ू-ए-शराब
होती
है,
ना
देखा करो
तुम यूँ
मुझे,नीयत
खराब होती
है...
मुझे
भी पता
था की
लोग बदल
जाया करते
हैं अक्सर,
मैंने
तुम्हे लोगों
में कभी
गिना ही
नहीं था...
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