महफ़िल-ए-शेर-ओ-शायरी---5

Monday, August 26, 2013

भले ही किसी और की जागीर था वो,
पर मेरे ख़्वाबों की तस्वीर था वो,
मुझे मिलता तो कैसे मिटा,
आखिर किसी और की तकदीर था वो...
 
हकीकत बन कर मिले और ख्वाब बन कर रह गए,
कुछ लोग मिले सवालों की तरह और जवाब बन कर रह गए,
कुछ ख्वाब दिए और कुछ ग़म देकर वो जाने चले गए कहाँ,
मेरे तन्हा लम्हे इन बातों का बस हिसाब करते रह गए...
 
ज़र्रे-ज़र्रे में मैं अपनी एक-एक साँस छोड़ गया,
उसकी एक-एक मुस्कान के लिए अपने दिल के हज़ार टुकड़े कर गया,
पता ही नहीं चला मेरी दीवानगी कब पागलपन में बदल गयी,
दिल तो आज भी उन्ही के पास है पर ये ज़िन्दगी मेरा साथ छोड़ गयी...
 
एक अजीब सा मंज़र नज़र आता है,
हर एक पल समंदर नज़र आता है,
कहाँ बनाऊं मैं घर शीशे से,
हर किसी के हाथ में पत्थर नज़र आता है..
 
मोहब्बत होती तो ग़ज़ल कौन लिखता,
कीचड के फूल को कमल कौन कहता,
प्यार तो कुदरत का करिश्मा है वरना,
एक लाश के घर को ताजमहल कौन कहता...
 
इस दिल से वो दूर जाते भी नहीं,
हकीकत में वो हमें चाहते भी नहीं,
औरों के लिए वो रोते रहते हैं रात भर,
हमारे लिए तो मुस्कुराते भी नहीं...
 
जान कह कर वो जान ले गए,
अपना कह कर वो जहां ले गए,
हम तो चल दिए बस उनके साथ यारों,
मगर जन्नत के बहाने वो हमें शमशान ले गए...
 
मेरा हर लम्हा चुरा लिया आपने,
आँखों को एक चाँद दिखा दिया आपने,
हमें ज़िन्दगी दी किसी और ने,
पर प्यार इतना देकर जीना सिखा दिया आपने...
 
ज़िन्दगी हमारी सितम हो गयी,
ख़ुशी जाने कहाँ दफ़न हो गयी,
बहुत लिखी खुद ने लोगों की किस्मत,
जब हमारी बारी आई तो स्याही ही ख़तम हो गयी...

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